
नई दिल्ली। जरा ध्यान दीजिएगा…हिंदी शब्दकोश में दो शब्द हैं…पहला आलोचना और दूसरा अभद्र टिप्पणी…हालांकि, एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में राजनेताओं की उनकी शैली या उनके द्वारा लिए गए फैसलों को लेकर उनकी आलोचना हो…यह बहुत जरूरी है…और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस तरह की आलोचना करने का अधिकार कोई और नहीं, बल्कि हमारा संविधान ही किसी वर्ग विशेष को ही नहीं, बल्कि सभी को प्रदान करता है, लेकिन कुछ लोग आलोचना की नौका पर सवार होकर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरीखे पदों पर विराजमान व्यक्ति के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने से गुरेज नहीं करते हैं और जब ऐसे लोगों के खिलाफ कानून अपना डंडा चलाती है, तो ये लोग कोर्ट की शरण में जाकर खुद के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का रोना रोने लग जाते हैं, लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक आप अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में सरेआम अपनी विकृत मानसिकता की नुमाइश करते रहेंगे और जब आपके खिलाफ कानून का डंडा चलेगा, तो आप अभिव्यक्ति की आजादी का रोना रोने लग जाएंगे?
इसी बीच जब सुप्रीम कोर्ट ने मुमताज मंसूरी के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए, तो अभिव्यक्ति की आजादी का रोना रोने लग गए, लेकिन कोर्ट ने भी साफ कर दिया कि अभिव्यक्ति की आजादी आपको इतनी भी आजादी नहीं दे देता है कि आप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरीखे पद पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ ही अभद्र टिप्पणी करने लग जाए।
बता दें कि ये वही मुमताज हैं, जिन्होंने कथित तौर पर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पर अभद्र टिप्पणी की थी, जिसके बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई, जिस रद्द कराने के लिए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर कोर्ट ने मुमताज की मांग को खारिज करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी को आपको इतनी भी आजादी नहीं दे देता है कि आप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसे पदों पर विराजमान व्यक्ति के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी करने लग जाए।
हमारे देश में हमेशा ही अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बहस देखने को मिलती रहती है, जिस पर लोग अलग-अलग तरह से अपना रिएक्शन व्यक्त करते हुए नजर आते हैं। लेकिन, अभी जिस तरह से इस पूरे मसले को लेकर केरल हाईकोर्ट की तरफ से टिप्पणी की गई है, उस पर आपका क्या कुछ कहना है। आप हमें कमेंट कर बताना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।