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राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: वैचारिक संघर्ष की यात्रा के 75 वर्ष

पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील जी आम्बेकर का कहना था की हर युवा को अपने छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बेनर तले निकलना चाहिए। जिससे की वह देश के विकास में अपनी भूमिका को एक सकारात्मक दिशा में लगा सकें और आज विद्यार्थी परिषद के बैनर तले निकले कहीं कार्यकर्ता हुए जिनमें गिरीश कुलकर्णी, अशोक भगत, डॉ. प्रसाद देवधर,जमशेद खान, इम्तियाज अली, मनोज सिन्हा, सतीश मराठे ऐसे और भी कहीं कार्यकर्ता  हैं।

देश को आजाद हुए आज 75 वर्ष से उपर हो गये हैं और इसकी आजादी में देश के हर वर्ग ने अपनी बड़ी अहम भूमिका निभाई है। लेकिन इस आजादी के बाद देश में एक ऐसे छात्र संगठन की आवश्यकता को महसूस किया गया। जो विद्यार्थियों को देश के लिए जीना सिखाये, राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका से अवगत करायें। तब इसकी आवश्यकता और जनमानस की भावना को समझते हुए आजाद भारत को मजबूत,आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए जिसमें युवा विद्यार्थियों की भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए आजादी के दो वर्ष बाद ही देश में 9 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना हुई और तब से आज तक देश के पुनर्निर्माण में अपने अधिकारिक ध्येय वाक्य ज्ञान,शील और एकता और युवाओं के प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हुए महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय में विद्यार्थीयोंके साथ मिलकर रचनात्मक कार्य करते हुए युवाओं में देश प्रेम की अलख जागते हुए आ रहा हैं।

swami vivekananda

सन् 1949 से 2023 तक की अपनी यात्रा करते हुए इस वर्ष अपना 75 वां स्थापना वर्ष बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस के रूप मनाने जा रहा हैं। आज विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन बनने की ख्याति अगर किसी संगठन को प्राप्त है तो वह है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। एक ऐसा संगठन जिसमें विद्यार्थीयों के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाता है। पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील जी आम्बेकर का कहना था की हर युवा को अपने छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बेनर तले निकलना चाहिए। जिससे की वह देश के विकास में अपनी भूमिका को एक सकारात्मक दिशा में लगा सकें और आज विद्यार्थी परिषद के बैनर तले निकले कहीं कार्यकर्ता हुए जिनमें गिरीश कुलकर्णी, अशोक भगत, डॉ. प्रसाद देवधर,जमशेद खान, इम्तियाज अली, मनोज सिन्हा, सतीश मराठे ऐसे और भी कहीं कार्यकर्ता  हैं। जिन्होंने अपनी कार्यशैली से भारत का मान बढ़ाया हैं और इन 75 वर्षों की यात्रा को देश के विद्यार्थीयों के लिए प्रेरणादायक बनाया हैं। लेकिन यह 75 वर्ष की यात्रा सहज ही नही पूरी हुई है इसके लिए कंही कार्यकर्ताओं ने अपने प्राणों की आहुति तक देकर इस छात्र संगठन के मान को बनाये रखा और अपने कर्तव्यों को निभाते हुए इस दुनिया से कंही कार्यकर्ता विदा हो गये।
देश में कुछ ऐसे राजनैतिक संगठन भी हुए जिन्होंने इस छात्र संगठन पर राजनैतिक संगठन होने और किसी विशेष राजनैतिक दल का सहयोग करने के आरोप भी लगाये और लगातार लगाते आ रहे हैं।

लेकिन ऐसे राजनैतिक संगठनों के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हमेशा से यह स्पष्ट मत रहा हैं की हम कोई राजनैतिक संगठन के वाहक नहीं अपितु हम राष्ट्रवाद के वाहक हैं। हम राजनीति नहीं अपितु राष्ट्र नीति के लिए काम करने वाले संगठन के कार्यकर्ता हैं। हमारे संगठन की कार्यशैली से हमने विश्व को यह सन्देश दिया है की विद्यार्थी कल का नहीं आज का नागरिक हैं। हम राज सत्ता बदलने पर नहीं समाज बदलने पर विश्वास रखने वाले कार्यकर्त्ता हैं। हमने उन लोगों या उन संगठनों का विरोध करने में बिल्कुल भी संकोच नहीं किया।

जिन्होंने अपने 39वें का कनाडा में हुए अधिवेशन में राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम को गाने का विरोध किया और अपने राजनैतिक फायदे के लिए उसके तीन मुख्य छंद हटा दिए गये जिनमें भारत माता को देवी, दुर्गा कह कर पूजने की बात कही गयी थी। ऐसे राजनैतिक दलो ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर व्यापक रूप से गाया जाने वाला गान न बना कर सदा के लिए सेक्युलर राजनैतिक सरकारों का बहु-सांस्कृतिक आखाडा बना दिया गया।

ऐसे मुद्दों को इन 75 वर्षों में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के द्वारा सामान्य विधार्थीयों के बीच ले जाकर उन्हें जागरूक करने के साथ ही देश के पुनर्निर्माण में विद्यार्थीयों की सकारात्मक भूमिका को निभाने का आग्रह निरंतर करते आ रहा हैं। और अपने विचार को सामान्य छात्रों तक अपने रचनात्मक,आंदोलनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से पहुंचा रहा हैं। जिससे की युवा छात्र अपने अध्ययन के साथ-साथ ही अपने देश के विकास उसके पुनर्निर्माण उसकी अपनी स्वयं की ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाए।