
नई दिल्ली। न राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के किसी काम आई और न ही अदानी के मामले ने कोई रंग दिखाया। त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के चुनावी रुझान विपक्ष के लिए किसी सदमे से कम नहीं हैं। त्रिपुरा में बीजेपी एक बार फिर बड़े बहुमत से सरकार बनाती दिख रही है। नगालैंड में भी एनडीपीपी के साथ गठबंधन एक बार फिर सत्ता में लौटता दिख रहा है। वहीं, मेघालय में उम्मीद यही है कि एक बार फिर बीजेपी का साथ लेकर एनपीपी के कोनरॉड संगमा फिर अपनी सरकार बनाएंगे। यानी विपक्ष को तीनों ही राज्यों में जोरदार हताशा का सामना वोटरों ने करवा दिया है।
त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में अपनी चुनावी रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विपक्ष जितना कीचड़ उछालेगा, उतना ही कमल खिलेगा। वोटरों ने शायद मोदी की ये बात गांठ बांध ली और इसी के मुताबिक वोटिंग कर दी। ऐसा ही कुछ 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ था। तब लोकसभा चुनाव से पहले राफेल लड़ाकू विमानों का मसला कांग्रेस और विपक्ष ने उठाया था। मोदी के लिए ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया गया था, लेकिन नतीजे में वोटरों ने 2014 के मुकाबले बीजेपी को और ज्यादा सीटें दे दी थीं। लोकसभा में बीजेपी 303 सीटें जीतकर 2019 में अकेले दम पर बहुमत में आ गई थी।
त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में जिस तरह कांग्रेस और टीएमसी समेत अन्य विपक्षी दल पस्त हुए हैं, उससे बीजेपी को और मजबूती मिल रही है। इसका असर तेलंगाना, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। ये साफ है कि मोदी पर लगने वाले आरोप और उनकी तरफ उठने वाली उंगलियों से वोटरों को विपक्ष अपनी तरफ खींचने में लगातार नाकाम रहा है और इस बार भी ये नाकामी उसके हाथ लगी है। ऐसे में कांग्रेस और अन्य बीजेपी विरोधियों को अपनी रणनीति नए सिरे से तय करनी होगी।