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Muslim Women: अब ताउम्र देना होगा तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता, मुस्लिम महिलाओं के लिए हित में कोर्ट का फैसला

Muslim Women: कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून 1986 की धारा 3(2) के तहत तलाकशुदा महिला अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दाखिल कर सकती है। ध्यान रहे कि यह फैसला फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने सुनाया है।

नई दिल्ली। मुस्लिम महिलाओं के हित में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अब मुस्लिम पुरुष आजीवन अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजाराभत्ता देने के लिए बाध्य होंगे। कोर्ट ने अपने फैसले में इद्दत काल के बाद भी पति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया है। आपको बता दें कि इस्लाम में इद्दत काल 40 दिनों का होता है। जिसके बाद तलाकशुदा महिला किसी अन्य पुरुष से शादी कर सकती है, लेकिन अब कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि पुरुष को अपनी तलाकशुदा पत्नी को ताउम्र गुजारा भत्ता देना होगा और यह गुजारा भत्ता ऐसा होना चाहिए कि जैसा तलाक से पहले महिलाएं अपना जीवन जी रही थी, ठीक वैसा ही जीवन वो तलाक के बाद भी जी सकें। गुजारा भत्ता इस तरह से निर्धारित किया जाना चाहिए। बता दें कि यह हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला है।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण) कानून 1986 की धारा 3(2) के तहत तलाकशुदा महिला अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी दाखिल कर सकती है। ध्यान रहे कि यह फैसला फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को तीन माह में गुजारा भत्ता और मेहर से संबंधित आदेश देने के लिए कहा है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि जब मजिस्ट्रेट से गुजारा भत्ता की दरें नहीं निर्धारित कर दी जाती है, तब तक पति को पांच हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देना होगा। इसके बाद सम्मानजक निर्धारित दरें पारित होने के बाद पति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा। आइए, आगे आपको पूरा माजरा विस्तार से बताते हैं कि आखिर किस मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला शौरल नुरुल हक की याचिका पर सुनाया है। बता दें कि नुरुल हक खान और खातून की शादी 21 मई 1989 को हुई थी। लेकिन 28 जून 2002 को नुरुल हक ने खातून को तलाक दे दिया। जाहिद ने अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कनिष्ठ श्रेणी गाजीपुर के समक्ष 10 सितंबर, 2002 को धारा 3 मुस्लिम महिला संरक्षण कानून के तहत अर्जी दी। कोर्ट ने यह फैसला धारा 125 सीआरपीसी के तहत सुनाया है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने तलाक से पूर्व पति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को 1500 रुपए प्रतिमाह देने का भी निर्देश दिया है। मुस्लिम महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए यह अहम फैसला माना जा रहा है। अब ऐसी स्थिति में आगामी दिनों में सरकार और कोर्ट की तरफ से इस पर क्या कुछ फैसला दिया जाता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।