
नई दिल्ली। पटना हाईकोर्ट ने बिना कोई भूमिका बनाए बिहार सरकार को दो टूक कह दिया है कि वो चार सप्ताह के दरम्यान आरक्षण पर अपना जवाबी हलफ़नमा दायर करें, ताकि हम किसी नतीजे पर पहुंच सकें। बता दें कि बीते दिनों नीतीश सरकार ने आरक्षण की सीमा को 50 फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद किए जाने के प्रस्ताव को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित करवाया था, जिसके विरोध में अब हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
ध्यान दें, याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दलील दी है कि संविधान में आरक्षण की सीमा महज 50 फीसद तय है, लेकिन बिहार सरकार ने अपने सियासी फायदे के लिए इसे बढ़ाकर 65 फीसद कर दिया है, जिस पर अंकुश लगाए जाने की आवश्यकता है। वहीं, अब इस याचिका को संज्ञान में लेने के बाद पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को उक्त निर्देश दिया है। विदित हो कि बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी)के लिए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक क्षेत्र में आऱक्षण की सीमा बढ़ाए का प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित करवाया है।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने हाल ही में नीतीश सरकार की ओर से पेश जातिगत आंकड़े के संदर्भ में अपनी दलीलें दीं। याचिककर्ता ने जातिगत जनगणना के आंकड़े को राजनीति से प्रेरित और गलत बताया। याचिका में कहा गया है कि जातिगत आंकड़े में यादवों और मुस्लिमों की संख्या को बढ़ाकर दिखाया गया है। हालांकि, राजद ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर इन्हें राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बताया है। उधर, राजद ने बीजेपी पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया था और यह भी कहा है कि बीजेपी अपने समर्थकों का सहारा लेकर कोर्ट में ऐसी याचिकाएं दाखिल करवाती हैं, जो कि आरक्षण के विरोध में होती हैं, लेकिन बीजेपी ने राजद के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर इसे उसका डर बताया है।
वहीं, सियासी गलियारों में चर्चा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में सियासी मोर्चे पर फायदा पाने के बाबत ही नीतीश कुमार ने आऱक्षण की सीमा को 50 फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद किए जाने का फैसला किया है। ध्यान दें, हाल ही में सामने आए जातिगत जनगणना में सर्वाधिक संख्या मुस्लिमों और यादवों की बताई गई, जिससे साधने की तैयारी अब बिहार सरकार की ओर से शुरू हो चुकी है।