
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से 14 संवैधानिक सवालों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति ने 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए एक फैसले के आलोक में सुप्रीम कोर्ट से ये राय मांगी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने फैसला सुनाया था कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को 3 महीने में विधेयक पर फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा न करने पर विधेयक को मान्य मानते हुए इसकी अधिसूचना जारी करने का राज्य सरकार को अधिकार होगा।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को संवैधानिक मूल्यों और व्यवस्था के उलट बताया है। राष्ट्रपति का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाकर संवैधानिक सीमा का उल्लंघन किया है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान के प्रतिकूल बताया और कहा है कि अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो किसी विधेयक को मंजूरी देने के लिए समय सीमा तय करता हो। राष्ट्रपति ने कहा है कि संघीय ढांचे, राष्ट्रीय सुरक्षा, कानूनों की एकरूपता और शक्तियों के पृथक्करण के विचार के आधार पर विधेयकों को मंजूरी देने का फैसला लिया जाता है।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 142 की व्याख्या के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिली शक्तियों के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाया है। राष्ट्रपति ने कहा है कि जहां संविधान और कानून में स्पष्ट व्यवस्था दी गई है, वहां कोर्ट की तरफ से अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल संवैधानिक असंतुलन पैदा कर सकता है। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को पूरी तरह न्याय करने का अधिकार मिला हुआ है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के सामने ये मुद्दा भी उठाया है कि राज्य सरकारें केंद्र-राज्य विवाद संबंधी संविधान के अनुच्छेद 131 की जगह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा संबंधी अनुच्छेद 32 का हवाला दे रही हैं और सीधे सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल कर रही हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा करने से संविधान का अनुच्छेद 131 कमजोर होता है। राष्ट्रपति ने अहम सवाल ये उठाया है कि जब संविधान राष्ट्रपति और राज्यपालों को किसी विधेयक पर फैसला लेने का विशेषाधिकार देता है, तो सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में किस तरह हस्तक्षेप कर सकता है। उन्होंने ये भी कहा है कि विधेयकों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राष्ट्रपति और राज्यपालों की ताकत को सीमित करती है।