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Delhi: सरकारी स्कूलों में दाखिला लेना मजबूरी, जरूरत या आकर्षण? केजरीवाल के शिक्षा मॉडल पर प्रियंक कानूनगो ने फिर उठाया सवाल

शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में सरकारी स्कूलों में दाखिले को लेकर अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। तकरीबन 17 लाख छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया। उधर, सरकारी स्कूलों का प्रधानाचार्य ने कहा कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए लोगों का सरकारी स्कूलों के प्रति रूझान बढ़ा है।

नई दिल्ली। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो बच्चों से जुड़े मसलों को उठाकर केजरीवाल सरकार पर हमलावर रहते ही हैं। कभी शिक्षा तो कभी स्वास्थ्य तो कभी सुरक्षा सरीखे मुद्दों को उठाकर कानूनगो का रुख हमेशा ही दिल्ली सरकार के खिलाफ सख्त रहा है। इस बीच एक बार फिर से प्रियंक कानूनगो ने सरकारी स्कूलों में दाखिले में हुई वृद्धि का मुद्दा उठाकर केजरीवाल सरकार को आईना दिखाया है। दरअसल, उन्होंने ट्विटर पर एक अखबार की कटिंग सार्वजनिक की है, जिसमें बच्चों से जुड़े दाखिलों के संदर्भ में समस्त जानकारी समाहित है। अखबार में प्रकाशित प्रतिवेदन में बताया गया है कि शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में सरकारी स्कूलों में दाखिलों में वृद्धि दर्ज की गई है। इसकी प्रमुख वजह माता-पिता की आर्थिक माली हालत है, चूंकि कोरोना के कारण आर्थिक रूप से संबल कई लोग आर्थिक क्षेत्र में दुर्बल हो गए थे। इसी बीच कई लोगों ने अपने बच्चे का दाखिला निजी स्कूलों से निरस्त कराकर सरकारी स्कूलों में करवा लिया।

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एक आंकड़े के मुताबिक, शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में सरकारी स्कूलों में 18 लाख से भी अधिक दाखिला हुआ है। विगत शैक्षणिक वर्ष की तुलना में दाखिले में 30 हजार दाखिले में वृद्धि हुई है। शिक्षा निदेशालय के मुताबिक, शैक्षणिक वर्ष सितंबर 2022 तक 18 लाख से भी अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है। इससे पूर्व विगत शैक्षणिक वर्ष में 17 लाख से भी अधिक छात्रों ने दाखिला लिया है। शैक्षणिक विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2009-10 और 2013-14 के बीच सरकारी स्कूलों में दाखिलों में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि 2009-10 में तेजी से दाखिले में गिरावट दर्ज की गई थी। 2012-13 में सरकारी स्कूलों में 15 लाख दाखिले दर्ज किए गए हैं। प्रतिवर्ष दाखिले के आंकड़ों में वृद्धि दर्ज की जा रही है।


इसके बाद शैक्षणिक वर्ष 2014-15 में दाखिले में वृद्धि दर्ज की गई। 2015-16 में 14 लाख छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है। इसके बाद शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में फिर सरकारी स्कूलों में 15 लाख दाखिले हुए, जो कि विगत शैक्षणिक वर्ष की तुलना में अधिक थे। इसके बाद 2020-21 में कोरोना की वजह से छात्रों का सरकारी स्कूलों की ओर रुझान बढ़ा और 16 लाख छात्रों ने दाखिला लिया। इस वर्ष महामारी की वजह से लोगों का सरकारी स्कूलों की ओर रुझान बढ़ा। विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना की वजह से विधार्थियों ने निजी स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों का रुख किया।

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शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में सरकारी स्कूलों में दाखिले में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई। तकरीबन 17 लाख छात्रों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया। उधर, सरकारी स्कूलों का प्रधानाचार्य ने कहा कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए लोगों का सरकारी स्कूलों के प्रति रूझान बढ़ा है।

उधर, सरकारी स्कूलों में कार्यरत प्रधानाचार्य का कहना है कि दाखिलों में हुई वृद्धि आगामी दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार के नए द्वारा खोलेगी। विधार्थियों की संख्या में वृद्धि होगी तो जाहिर है कि शिक्षकों के लिए नए-नए पद उद्धव होंगे जो कि शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार से अछूते लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा, लेकिन इन आंकड़ों का दूसरा पहलू भी निकलकर सामने आता है, जिसे एनसीपीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने अपने ट्विट में समाहित कर हम सभी के सामने पेश किया है। जिस पर हमें विचार करने की आवश्यकता है।

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प्रियंक कानूनगो ने उपरोक्त प्रतिवेदन को अपने ट्वीट में संलगन कर अपनी राय सार्वजनिक की है। उन्होंने उपरोक्त आंकड़ों को आधार बनाकर केजरीवाल सरकार के पर प्रश्चचिन्ह खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि जिस तीव्र गति से सरकारी स्कूलों में दाखिलों में वृद्धि हो रही है, वो इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है कि केजरीवाल सरकार निजी स्कूलों में ईडब्लूएस के विधार्थियों को दाखिला दिलवाने में नाकाम रही है। जहां एक तरफ दिल्ली सरकार अपनी शिक्षा व्यवस्था की तारीफ करते हुए नहीं थकती है, तो वहीं दूसरी तरफ यह आंकड़े कहीं ना कहीं विवेचना का विषय है। अब ऐसी स्थिति में बतौर पाठक आपका उपरोक्त विषय पर क्या कुछ कहना है।