
नई दिल्ली। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 आजकल बहुत चर्चा में है। ज्ञानवापी मस्जिद समेत कई धार्मिक स्थलों के संबंध में अदालतों में दाखिल मुकदमों और सर्वे के आदेशों के कारण प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट चर्चा में आया है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी दाखिल हो चुकी हैं। इन सभी याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट की खास बेंच सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इसके लिए 3 जजों की विशेष बेंच बनाई है। इस बेंच में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के अलावा जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विष्णुवथन होंगे। बेंच 12 दिसंबर को दोपहर 3.30 बजे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर पहली सुनवाई करेगी।
साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। अब तक केंद्र ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। अब विशेष बेंच बनाए जाने और सुनवाई की तारीख तय होने के बाद माना जा रहा है कि केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया जाएगा। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रहमण्यम स्वामी, वकील अश्विनी उपाध्याय, अनिल कुमार त्रिपाठी और करुणेश कुमार शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर इसे अवैध बताया है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जरूरी बताया है। जबकि, ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उनकी मस्जिद के खिलाफ चालाकी से तैयार याचिकाएं दाखिल हुई हैं। इस वजह से वो भी महत्वपूर्ण पक्षकार है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को पीवी नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार ने पास कराया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत अयोध्या विवाद को ही दायरे से बाहर रखा गया था। इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को जिस पूजास्थल की जो स्थिति थी, उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। एएसआई संरक्षित स्मारकों को इस एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया। वहीं, पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि इस कानून के तहत धार्मिक स्थल का रूप जानने पर कोई रोक नहीं है। इसी प्रावधान के तहत वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में एएसआई का सर्वे कराया गया।