
नई दिल्ली। केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना कराने का निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है। जनहित याचिका में अपील की गई है कि देश की सबसे बड़ी अदालत पिछड़े और कमजोर वर्गों की भलाई के लिए जातिगत जनगणना कराने का आदेश दे। जनहित याचिका में जातिगत जनगणना कराने के कई फायदे गिनाए गए हैं। अगर कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए राजी होता है, तो केंद्र सरकार को इस पर जवाब देना होगा। केंद्र की मोदी सरकार अब तक जातिगत जनगणना के मुद्दे पर चुप रही है, लेकिन बीजेपी के नेता कहते रहे हैं कि जातिगत जनगणना से समाज में टकराव बढ़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका में कहा गया है कि इससे वंचित रह गए समूहों की पहचान हो सकेगी। साथ ही संसाधनों के बंटवारे में समानता आएगी। इसके साथ ये फायदा भी बताया गया है कि सामाजिक न्याय और संविधान के उद्देश्यों को हासिल किया जा सकेगा। नीतियों को लागू करने में निगरानी भी हो सकेगी। जनहित याचिका में कहा गया है कि सटीक डेटा मिलने से लोगों की सामाजिक और आर्थिक भलाई होगी। साथ ही जनसांख्यिकी को समझने में भी मदद मिलेगी। अब देखना ये है कि जनहित याचिका में जातिगत जनगणना के ये जो फायदे गिनाए गए हैं, उन पर कोर्ट की राय क्या होती है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने काफी दिन से जातिगत जनगणना कराने की मांग जारी रखी हुई है। जातिगत जनगणना की मांग सबसे पहले कांग्रेस ने उठाई थी। लोकसभा चुनाव में इसे विपक्षी दलों ने मुद्दा भी बनाया था। हाल के दिनों में मोदी सरकार में शामिल एलजेपी-आर के नेता चिराग पासवान ने भी जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में बयान दिया है।
वहीं, बीएसपी सुप्रीमो मायावती लगातार इस मसले पर कांग्रेस को निशाने पर ले रही हैं कि उसने सबसे लंबे वक्त तक केंद्र में शासन किया, लेकिन तब जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराई। साथ ही कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने भी जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी नहीं किए हैं। इस मुद्दे पर भी कांग्रेस घिरती रही है। बिहार में सबसे पहले नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत सर्वे कराया था। इसके आधार पर नीतीश सरकार ने बिहार में पिछड़े वर्गों का आरक्षण बढ़ाने का कानून भी पास कराया, लेकिन पहले पटना हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने कोटा बढ़ाने पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने फैसले में कह चुका है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। हालांकि, मोदी सरकार की तरफ से गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दिखाई थी।