
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त की योजनाओं यानी फ्रीबीज के मामले में सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस आर. जॉर्ज मसीह की बेंच ने शहरी गरीबी उन्मूलन मामले पर बुधवार को सुनवाई के दौरान मुफ्त की योजनाओं पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी योजनाओं की वजह से लोग काम करने से बचना चाह रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि लोगों को बिना काम के पैसे मिल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को मुफ्त राशन और पैसे मिलते हैं। ऐसे लोगों को मुख्यधारा में लाना ही प्राथमिकता है।
जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह की बेंच ने कहा कि चुनाव से पहले फ्रीबीज की घोषणाएं होती हैं। दुर्भाग्य से इनकी वजह से लोग काम करने से कतराते हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी से कहा कि हम जनता को लेकर आपकी चिंताओं को समझते हैं, लेकिन क्या ऐसा करना बेहतर नहीं होगा कि लोगों को मुख्यधारा में लाकर उनसे राष्ट्र के विकास में योगदान कराया जाए। अटॉर्नी जनरल वेंकटरमनी ने सुनवाई के दौरान कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप दे रही है।
बता दें कि कुछ दशक से ही चुनाव के दौरान मुफ्त की योजनाओं के एलान की परिपाटी राजनीतिक दलों ने शुरू की है। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त अनाज, हर महीने गरीब महिलाओं को कुछ रकम देने जैसी मुफ्त की योजनाएं ज्यादातर राज्यों में चल रही हैं। चुनावों के दौरान राजनीतिक दल मुफ्त की योजनाओं का एलान करने में आपसी होड़ भी करते हैं। पीएम नरेंद्र मोदी भी मुफ्त की योजनाओं को लागू करने की मुखालिफत कर चुके हैं, लेकिन बीजेपी और एनडीए शासित राज्यों की सरकारों ने मुफ्त की कई योजनाएं चला रखी हैं। उसी तरह विपक्ष शासित राज्यों में भी मुफ्त की योजनाएं चल रही हैं। इससे खजाने पर बोझ पड़ता है और राज्यों की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल होती है।