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SC Order On Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, जानिए इससे राजनीतिक दलों को चंदा मिलना जारी रहेगा या नहीं

SC Order On Electoral Bond: साल 2017 में मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना शुरू की थी। संसद से मंजूरी मिलने के बाद ये योजना 29 जनवरी 2018 से शुरू हुई। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

नई दिल्ली। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पार्टियों को चंदा देने पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सर्वसम्मति से इलेक्टोरल बॉन्ड को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि स्टेट बैंक को 3 हफ्ते में चुनाव आयोग को बताना होगा कि 2019 से किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। कोर्ट ने कहा कि जनता को ये जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला। कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड आरटीआई एक्ट के खिलाफ हैं। चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने ये फैसला सुनाया। दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड से किस पार्टी को कितना चंदा मिला, ये आम लोगों को नहीं बताया जाता था। कोर्ट ने कहा कि कालेधन पर रोक लगाने में जनता को जानने के अधिकार का अहम रोल है। कोर्ट ने कहा कि बड़े चंदे गोपनीय बनाए रखना असंवैधानिक है और हर चंदा हित साधने के लिए नहीं है।

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साल 2017 में मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना शुरू की थी। संसद से मंजूरी मिलने के बाद ये योजना 29 जनवरी 2018 से शुरू हुई। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। एडीआर की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड को बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट इस्तेमाल करते हैं और इससे वे सरकार के नीतिगत फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड को सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी एसबीआई जारी करता है। इसके जरिए गुमनाम तरीके से राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी वगैरा कर सकते हैं। बॉन्ड जारी होने का एलान एसबीआई की तरफ से किया जाता रहा है। इस दौरान 1000 रुपए से 1 करोड़ की कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे जाते रहे हैं। इस बॉन्ड में सिर्फ पार्टी का नाम भरकर स्टेट बैंक की खास ब्रांच में जमा करना होता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा हासिल करने के वास्ते पार्टियों को ये शर्त पूरी करनी होती है कि आम चुनाव में उसे कम से कम 1 फीसदी वोट मिला हो। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को कालाधन मिलने पर अंकुश लगेगा और चंदे का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। कोर्ट में केंद्र सरकार ने ये भी कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पारदर्शी है। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर से 2 नवंबर 2023 तक इस मामले में सुनवाई की थी। फिर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी कहा था कि वो पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले चंदे का हिसाब-किताब दे। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आ गया है।