नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों की तरफ से दी जा रही मुफ्त की योजनाओं पर सवाल खड़ा किया है। प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन संबंधी एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने सवाल दागा कि मुफ्त की रेवड़ी कब तक दी जाती रहेगी? सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि वो प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करे। सुप्रीम कोर्ट में इस दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि देशभर में 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या सब्सिडी वाला राशन दिया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इसका मतलब है कि सिर्फ टैक्स देने वाले ही बचे हुए हैं।
प्रवासी मजदूरों को राज्यों की तरफ से राशन दिए जाने के संबंध में आदेश पारित करने की चर्चा होने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जैसे ही ऐसा आदेश देंगे, तो यहां कोई भी दिखाई नहीं देगा। प्रवासी मजदूर राज्यों में भाग जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि क्यों न प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर, रोजगार और क्षमता निर्माण पर काम करें। बता दें कि प्रवासी मजदूरों को राज्यों में मुफ्त राशन के लिए एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। इस एनजीओ के लिए वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की। खास बात ये है कि पीएम नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि राज्य सरकारों ने मुफ्त की जो योजनाएं शुरू की हैं, उससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। उन्होंने कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकारों का उदाहरण भी दिया था। जबकि, बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में भी लाडली बहन योजना चल रही है। वहीं, महाराष्ट्र की बीजेपी नीत महायुति सरकार भी लाडकी बहीण योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए दे रही है।
देश में सबसे पहले मुफ्त की योजना दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने शुरू की थी। दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी की योजना चलाई गई। फिर कोरोना काल से केंद्र की मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने लगी। इसके बाद कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने मुफ्त की योजनाओं का एलान कर सत्ता हासिल की। इसकी देखादेखी बीजेपी ने भी मुफ्त की योजनाओं का एलान कर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव जीतकर सत्ता हासिल की है।