नई दिल्ली। यूपी मदरसा एक्ट पर आज भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई है। मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले पर स्टे दिया था। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर सुनवाई कर रहा है कि यूपी मदरसा एक्ट असंवैधानिक है या नहीं। इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपनी राय रखी है। एनसीपीसीआर ने मदरसों में दी जा रही इस्लामी शिक्षा और अन्य मसलों पर अपना विरोध जताया है।
एनसीपीसीआर ने विरोध में कहा है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक और सही शिक्षा नहीं मिलती। उसका कहना है कि शिक्षा के लिए जरूरी माहौल और सुविधाएं भी मदरसों में नहीं होतीं। एनसीपीसीआर के अनुसार मदरसों को शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। इससे आरटीई एक्ट के तहत बच्चों को फायदा नहीं मिलता। मदरसों में मिड-डे मील, यूनिफॉर्म भी नहीं मिलते। साथ ही प्रशिक्षित टीचर भी मदरसों में नहीं होते। एनसीपीसीआर के अनुसार मदरसों में धार्मिक शिक्षा पर ही जोर दिया जाता है। एनसीपीसीआर ने कहा है कि यूपी उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में तमाम ऐसे मदरसा हैं, जहां मुस्लिम के अलावा अन्य धर्मों के बच्चे भी पढ़ते हैं और उनको भी इस्लाम की जानकारी दी जाती है। एनसीपीसीआर के अनुसार ये संविधान के अनुच्छेद 28(3) के खिलाफ है।
एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में ये दलील भी दी है कि मदरसा बोर्ड के सिलेबस में कई आपत्तिजनक चीजें भी हैं। मदरसों में ऐसी किताबें पढ़ाई जाती हैं, जिनमें इस्लाम को श्रेष्ठ बताया गया है। टीचर बनने की जरूरी योग्यता के बिना मदरसा में नियुक्ति होती है। एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान के एक शख्स ने देवबंद के विश्व प्रसिद्ध मदरसा दारुल उलूम से गैर मुस्लिमों पर आत्मघाती हमले के बारे में सवाल पूछा था। दारुल उलूम ने अपने जवाब में इसे गैर कानूनी नहीं बताया और ये कहा कि वो शख्स अपने स्थानीय जानकार से इस बारे में सलाह ले। एनसीपीसीआर के अनुसार दारुल उलूम का ये कहना गैर मुस्लिमों पर आत्मघाती हमले को सही भी बता रहा है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है। दारुल उलूम देवबंद का एक फतवा गजवा-ए-हिंद की बात कहता है। एनसीपीसीआर के अनुसार दारुल उलूम के ऐसे फतवों से बच्चों में देश के खिलाफ ही नफरत की भावना बढ़ती है।