नई दिल्ली। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले में आज दोपहर 3.30 बजे सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएं दाखिल हुई हैं, उनमें प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ के साथ ही उसका समर्थन करने वाली भी हैं। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इनमें से एक में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग एक याचिका में हुई है। इस याचिका में कहा गया है कि संबंधित धाराएं व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर फिर से दावा करने के न्यायिक समाधान के हक को छीनती हैं।
वहीं, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है। इस याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट गौर करेगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में कहा है कि इस एक्ट को इसके वास्तविक रूप में बनाए रखा जाए। वहीं, वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी याचिका में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के खिलाफ चालाकी से कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर दाखिल कई याचिकाओं में कहा गया है कि इसके प्रावधान देश की व्यवस्था, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है। ऐसे में पक्ष और विपक्ष में याचिकाएं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट के लिए अहम रहेगा कि वो किस पक्ष की बात को सही ठहराता है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लंबे समय से असंवैधानिक बताने वालों की कमी नहीं है। उनका कहना है कि इससे संविधान के तहत मिली धार्मिक आजादी के अधिकार का उल्लंघन होता है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को कांग्रेस सरकार के वक्त पीवी नरसिंह राव ने लागू कराया था। सिर्फ अयोध्या विवाद को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया। साथ ही प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के दायरे में एएसआई संरक्षित स्थल भी नहीं आते हैं। इस एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को जो भी धार्मिक स्थल जिस रूप में था, उसे बदला नहीं जा सकेगा। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि इस कानून में किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप के पहचान पर रोक नहीं लगाई गई है। इसी आधार पर ज्ञानवापी समेत कई मामलों में अदालतों में याचिकाएं दाखिल हुई हैं।