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‘शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी नहीं बल्कि हुनरमंद बनाना हो’

केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभास सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुत से विषय ऐसे हैं जो जनजाति समाज के लिए लाभकारी हैं। शिक्षा में इस पर वोकेशनल स्टडी पर बहुत ध्यान दिया गया है। ताकि हुनर का विकास हो यानी स्किल डिवेलपमेंट हो।

नई दिल्ली। जनजाति समाज की समस्या अन्य समाज से अलग है। यदि शहर के मध्यम वर्ग की बात करें तो उस समाज के पास सबसे बड़ी समस्या होती है कि पहले बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना। इसके बाद अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलाना उसका सबसे बड़ा टास्क होता है। इसके बाद नौकरी अच्छी मिल जाए मध्यम वर्ग का यह एकमात्र ध्येय होता है। ऐसा जनजाति समाज के साथ ऐसा नहीं। यदि गांव की बात करें तो वहां स्थिति ज्यादा अच्छी है। यदि गांव में बच्चे के अच्छे नंबर नहीं आते हैं तो वह अपने पिता से बात करता है। पिता उसे कुछ बताते हैं तो वह कैसे भी करके कुछ न कुछ कर ही लेता है। कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि शिक्षा केवल नौकरी पाने के लिए न हो बल्कि शिक्षा ऐसी हो जो हुनरमंद बना सके। जनजाति समाज के लिए ऐसी शिक्षा जरूरत ज्यादा है। यह बातें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातिआयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में ”जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” शीर्षक से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में कही।

केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभास सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुत से विषय ऐसे हैं जो जनजाति समाज के लिए लाभकारी हैं। शिक्षा में इस पर वोकेशनल स्टडी पर बहुत ध्यान दिया गया है। ताकि हुनर का विकास हो यानी स्किल डिवेलपमेंट हो। इसके अलावा इस बार ऐसा भी प्रावधान किया गया है कि यदि आपने किसी कारणवश बीच में पढ़ाई छोड़ दी है तो आप बाद में आकर भी उसे पूरी कर सकते हैं। आपको फिर शुरू से पढ़ाई करने की जरूरत नहीं है।

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शिवगंगा के प्रमुख पदमश्री महेश शर्मा ने कहा कि केवल स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि सामाजिक शिक्षा की भी जरूरत बहुत ज्यादा होती है। सहयोग से समाज के बीच रहकर हम जो सीखते हैं वह भी शिक्षा ही है। जनजाति समाज का जो बच्चा अपने समाज के बीच रहकर बचपन से जो सीखता है वह स्वयं एक अच्छा नागरिक तैयार होता है।

आयोग के सदस्य अनंत नायक ने कहा कि आजादी से पहले मद्रास गजेटियर के आंकड़ों से तुलना में वर्तमान जनजातीय शिक्षा का स्तर गिरा है तो चितंनीय है। इस आत्ममंथन किए जाने की जरूरत है। हम यहां दो दिन जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति पर बात करने  के लिए एकत्रित हुए हैं। ऐसी अपेक्षा है कि जब दो दिन बाद यह संवाद खत्म होगा तो हमारे पास कुछ सार्थक सुझाव और एक सही दिशा में काम करने का निष्कर्ष ज़रूर होगा।