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Ayodhya Ram Mandir: जहां भगवान राम ने ली थी शिक्षा, अब उस जगह का होगा कायापलट, सरकार ने लिया ये बड़ा फैसला

Ayodhya Ram Mandir: बाराबंकी जिले का सतरिख इलाके में कभी भगवान राम ने शिक्षा ग्रहण की थी। यहां सप्तऋषि धाम हुआ करता था, जहां भगवान राम ने शिक्षा ग्रहम की थी। वहीं, भगवान राम के तीनों भाइयों ने भी यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी। इस बीच जब भगवान राम का प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी जोरों पर है।

नई दिल्ली। आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन होना है। इस उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने के बाबत सभी गणमान्यों को केंद्र सरकार की ओर से आमंत्रित किया जा चुका है। लेकिन विडंबना देखिए कि कुछ लोग अब इस निमंत्रण को लेकर भी राजनीति का तड़का लगा रहे हैं। वहीं, इस बीच कुछ विपक्षी दल ऐसे भी हैं, जो कि खुलकर इस बात की पैरोकारी कर रहे हैं कि राम सबके हैं, लिहाजा हमें कोई बुलाए या ना बुलाए, लेकिन हम आएंगे। खैर, राम मंदिर को लेकर जारी सियासी शोरगुल के बीच रामभुक्तों में अपने इस खास मौके पर अपने आराध्य के बारे में जानने की आतुरता अपने चरम पर पहुंच चुकी है। इसी बीच आइए इस रिपोर्ट में हम आपको उस जगह के बारे में विस्तार से बताते हैं, जहां भगवान राम ने शिक्षा ग्रहण की थी।

 

आपको बता दें कि बाराबंकी जिले के सतरिख इलाके में कभी भगवान राम ने शिक्षा ग्रहण की थी। यहां सप्तऋषि धाम हुआ करता था, जहां भगवान राम ने शिक्षा ग्रहण की थी। वहीं, भगवान राम के तीनों भाइयों ने भी यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी। इस बीच जब राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी जोरों पर है, तो सतरिख को भी पुन: विकसित करने की कवायद तेज कर दी गई है, जिसे देखते हुए राम भक्तों का उत्साह  अपने चरम पर है। इस आश्रम में सप्तश्रति की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

वहीं, इस खास मौके पर महंत नानक दास उदासीन ने कहा कि, ‘धनुष विधा सीखने के बाद भगवान राम ने राक्षसों का संहार किया था। इस आश्रम में आज भी कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं, जो कि इस बात की प्रत्यक्ष गवाही देते हैं कि भगवान राम ने यहीं से धनुष विधा सीखी थी, जिसके बाद उन्होंने राक्षसों का संहार किया था। एक दफा उन्होंने अपने धनुष से एक तीर मारा था, जो कि 1.5 किलोमीटर दूर तक जाकर गिर पड़ा था। बताया जाता है कि यह तीर आज भी मौजूद है, जिसकी लोग पूजा करते हैं।

इसके साथ ही इस आश्रम के पास एक कुआं भी है, जहां भगवान राम स्नान किया करते थे। बताया जाता है कि पहले यह आश्रम एक गुरुकुल था, जहां ऋषि-मुनि निवास किया करते थे। यहां पूर्व में कई राक्षस भी हुआ करते थे, जो कि ऋषि-मुनियों के अनुष्ठान में बाधा पहुंचाते थे, जिसे ध्यान में रखते हुए गुरु विश्वामित्र ने अयोध्या जाने का फैसला किया, जिसके बाद उन्होंने राजा दशरथ के 13 साल के हो चुके चारों पुत्रों को अपने साथ आश्रम ले जाए और उन्हें शिक्षा-दीक्षा देना प्रारंभ किया।