नई दिल्ली। ‘वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज, वक्त की ठोकर में है क्या हुकूमत क्या समाज’ गीतकार साहिर लुधियानवी के गाने की ये पंक्तियां आजकल बसपा सुप्रीमो मायावती पर बिलकुल सटीक बैठती हैं। कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिसके सितारे हमेशा चमकते रहते थे, यूपी में चार बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी मायावती के नाम पर है।
आज उन्हीं बहन जी की पार्टी बसपा के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। देश में आम चुनाव का बिगुल बजने ही वाला है। सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 80 लोक सभा सीटों की लड़ाई है। सत्तासीन भाजपा जहां यूपी की सभी सीटों पर जीत का दावा कर रही है तो वहीं दूसरी ओर सपा और कांग्रेस भी अपना परचम बुलंद होने कादावा कर रहीं हैं। चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही राजनीतिक दलों और उनके गठबंधन की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। भाजपा का विजयी रथ रोकने के लिए से लड़ने के लिए सपा और कांग्रेस साथ आ गई हैं। अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने आखिरकार न-न करते हुए एक दूसरे से हाथ मिला ही लिया। हालांकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी करारा झटका देते हुए भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए हैं। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने किसी भी दल के साथ गठबंधन न करके लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने का निर्णय लिया है। बसपा के सामने सबसे बड़ी समस्या जनाधार वाले उम्मीदवारों का न होना है। ऐसा कहा जा रहा है कि मायावती अपने सभी 10 सांसदों के टिकट काटने जा रही हैं, ऐसे में टिकट कटने के डर से कई सांसद पाला बदलने की तैयारी में लग गये हैं और कुछ ने तो पाला बदल भी लिया है। अभी तक बसपा के जो सांसद पाला बदल चुके हैं उनमें जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी और मुस्लिम सांसद गुड्डू जमाली जो सपा में जा चुके हैं जबकि बसपा के एक और चर्चित मुस्लिम चेहरा दानिश अली कांग्रेस में जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड मायावती के नाम पर है। मायावती जून 1995 में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ कर बीजेपी और अन्य दलों के समर्थन से
पहली बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। हालांकि उनका कार्यकाल केवल चार महीने का था। मायावती दूसरी बार साल 1997 में मुख्यमंत्री बनी इस बार उनका कार्यकाल छ: महीने का था। तीसरी बार वह साल 2002 में बाजेपी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आईं, तब उनका कार्यकाल एक साल 118 दिन का था। वहीं साल 2007 में मायावती 403 विधानसभा सीटों में से 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत में आई थीं, इस बार उनका कार्यकाल साल 2007 से लेकर साल 2012 तक रहा। साल 2007 में मायावती ने अपने बूते यूपी में सत्ता हासिल की थी। तब उनकी सोशल इंजीनियरिंग के खूब चर्चे हुआ करते थे। मायावती ने दलित और ब्राह्मण वोटों का गठजोड़ किया और सफल रहीं, लेकिन 2017 में उनका दलित-मुस्लिम प्रयोग पूरी तरह फेल रहा।
बसपा का वोट शेयर भी लगातार घटता जा रहा है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी के वोट शेयर 22 फीसदी थे, लेकिन पांच साल बाद 2022 आते आते 13 फीसदी पहुंच गये। अगर 2019 में बीएसपी के वोट शेयर से तुलना करें तो 6 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हुआ था। मायावती ने कहा है कि हमारी पार्टी देश में जल्दी ही घोषित होने वाले लोकसभा के आम चुनाव गरीबों और उपेक्षित वर्गों में से विशेषकर दलितों, आदिवासियों, अति पिछड़े वर्गों, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोगों के बलबूते ही पूरी तैयारी और दमदारी के
साथ लड़ेगी। आज की बात करें तो कहीं न कहीं बसपा के पारम्परिक वोट बैंक में भी अब सेंध लग चुकी है। हालांकि मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी पार्टी का नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है किंतु उनकी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता उनके इस निर्णय को पूरी तरह से पचा नहीं पा रहे हैं और अभी प्रदेश की रानजीति में आकाश की इतनी पकड़ भी नहीं है। दूसरी ओर भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर भी आजकल दलित नेता के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं इससे बसपा का वोट बैंक डायवर्ट हो रहा है और अगर ऐसा ही रहा तो आने वाला समय बसपा के लिए और भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।