नई दिल्ली। यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निष्कर्ष कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है, सही नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 22 मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर नोटिस जारी करते हुए यूपी सरकार समेत सभी पक्षकारों से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने राज्य सरकार समेत सभी पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट में 30 जून तक जवाब दाखिल करने का समय दिया है।
Supreme Court stays the Allahabad High Court’s March 22 judgment striking down ‘UP Board of Madarsa Education Act 2004’ as unconstitutional.
Supreme Court says the finding of Allahabad High Court that the establishment of a Madarsa board breaches the principles of secularism… pic.twitter.com/bKDrPNvMKj
— ANI (@ANI) April 5, 2024
मदरसा बोर्ड की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें पेश करते हुए कहा कि ये हाईकोर्ट के आदेश से 16000 मदरसों के पढ़ने वाले लगभग 17 लाख छात्रों के भविष्य की बात है। इस आदेश पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदरसों की जांच के लिए अक्टूबर 2023 में एसआईटी का गठन किया था। इससे पहले मार्च महीने में ही अवैध मदरसों की जांच कर रही एसआईटी ने योगी सरकार से करीब 16 हजार मदरसों को बंद करने की सिफारिश की है। जांच में जो मदरसे अवैध पाए गए हैं उनमें से ज्यादातर नेपाल सीमा पर स्थित हैं।
एसआईटी ने रिपोर्ट में दावा किया है कि इन मदरसों का निर्माण पिछले दो दशकों में खाड़ी देशों देशों से प्राप्त धन से किया गया है। एसआईटी ने रिपोर्ट में आगे कहा था कि इन मदरसों से उनकी आय और व्यय का ब्योरा मांगा गया तो वे उपलब्ध नहीं करा सके। यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित एक कानून था जो राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत, मदरसों को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ न्यूनतम मानकों को पूरा करना आवश्यक था। बोर्ड मदरसों को पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री, और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी दिशानिर्देश प्रदान करता था।