
नई दिल्ली। उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह तीर और कमान फिसलकर महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के हाथ में पहुंच गया है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार शाम को उद्धव की जगह एकनाथ शिंदे के गुट को शिवसेना का नाम और तीर कमान का चुनाव चिन्ह देने का फैसला किया था। चुनाव आयोग के इस फैसले के बाद उद्धव ठाकरे ने देश में तानाशाही होने और अब पार्टी और चुनाव चिन्ह हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का एलान किया है। वहीं, सीएम एकनाथ शिंदे ने पलटवार करते हुए कहा है कि उद्धव ने पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह को गिरवी रख दिया था। अब इसे सही हाथों में चुनाव आयोग ने दिया है। अब आपको बताते हैं कि वो दो कौन सी बड़ी वजहें हैं, जिन्होंने शिवसेना के नाम की जंग में उद्धव ठाकरे को चुनाव आयोग में शिकस्त दिलवा दी।
शिवसेना और तीर-कमान चुनाव चिन्ह की ये जंग अब कोर्ट में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुटों के बीच होने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही दोनों के बीच शिवसेना के नाम पर हक का केस चल रहा है। बहरहाल, चुनाव आयोग ने किस वजह से उद्धव की जगह एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना और उसके तीर कमान चुनाव चिन्ह का हक दिया, ये आपको बताते हैं। चुनाव आयोग ने मामले पर गौर किया, तो पाया कि शिवसेना का संविधान अलोकतांत्रिक है। साल 2018 में संशोधन के लिए कहने के बाद भी इसमें बदलाव कर चुनाव आयोग को उद्धव ठाकरे ने सूचना नहीं दी थी।
इसके अलावा एक बड़ी चीज जो उद्धव ठाकरे गुट के खिलाफ गई, वो जीते हुए विधायकों और सांसदों की संख्या और उनको मिले वोटों की रही। एकनाथ शिंदे गुट के साथ शिवसेना के 55 में से 40 विधायक हैं। इन विधायकों को मिले वोटों की तादाद 3657327 है। वहीं, उद्धव के साथ 15 विधायक हैं। इनको मिले वोटों की तादाद 1125113 हैं। यानी शिंदे गुट के पास कुल 4782440 में से 76 फीसदी वोट वाले विधायक और उद्धव के पास महज 23.5 फीसदी वोट वाले विधायक हैं। जबकि, सांसदों की बात करें, तो एकनाथ शिंदे के साथ 13 शिवसेना सांसद हैं। इनको मिले वोटों की संख्या 7488634 है। वहीं, उद्धव ठाकरे गुट के साथ 5 सांसद हैं। इन सांसदों को मिले वोटों की संख्या 2756509 है। इस तरह 73 फीसदी सांसदों को मिले वोट शिंदे और 27 फीसदी उद्धव गुट के पास हैं।