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जब वोट नहीं तो सरकार में प्रतिनिधित्व दिए जाने का सवाल ही बेमानी है

विपक्ष ने फिर वही राग अलापा है कि राजग सरकार में एक भी मुसलमान को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। लोकतंत्र में जनता सांसद चुनती है, जिसका बहुमत होता है वह सरकार बनाता है। जब आप बहुमत के साथ नहीं हैं तो फिर प्रतिनिधित्व की इच्छा क्यों रखते हैं ?

जब अल्पसंख्यकों की बात आती है तो कांग्रेस और उसके सभी साथी दलों की तरफ से सबसे पहले मुसलमानों का नाम लिया जाता है। हालांकि अल्पसंख्यक समाज के अन्य धर्मों के लोग भी देश में रहते हैं, लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले राजनीतिक दल खासकर के कांग्रेस हमेशा अल्पसंख्यकों के नाम पर सिर्फ मुसलमानों की ही बात करते हैं। अब एक बार फिर से यही राग शुरू हो गया है कि राजग सरकार में एक भी मुसलमान को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। रही बात अल्पसंख्यकों की तो मोदी सरकार ने पांच—पांच अल्पसंख्यकों को सरकार में प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया है। बौद्ध धर्म से किेरन रिजिजू, रामदास अठावले को मंत्री बनाया गया है। सिख धर्म से हरदीप पुरी और रवनीत सिंह बिट्टू को मंत्री बनाया गया है। ईसाई धर्म से जॉर्ज कुरियन को मंत्री बनाया गया है।

पहला सवाल यहां उठता है कि जो भी राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टीकरण की बात कर रहे हैं पहले वह यह बताएं कि उनमें से कौन सा दल राजग में शामिल है। जितने भी मुसलमान प्रत्याशी जीतकर आए हैं वह उन दलों से जीतकर आए हैं जिन्होंने भाजपा को हराने के लिए एकजुट होकर चुनाव लड़ा था। गठबंधन का नाम था ‘इंडी गठबंधन’। जब एजेंडा चलाने की बात आती है तो भाजपा को मुस्लिम विरोधी बताया जाता है, मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया जाता है, उन्हें बरगलाया जाता है, इसलिए मुसलमान उन्हें अपना हितैषी मानकर उन्हीं दलों को वोट करता है जो भाजपा को कोसते हैं। इंडी गठबंधन की सरकार पर जनता ने भरोसा नहीं जताया तभी राजग सरकार देश में बनी है।

दूसरा सवाल यह कि जब लेने की बात आती है तो सबसे पहले मुस्लिम समाज के लोग वहां होते हैं। सरकारी योजनाओं में किसी के साथ पक्षपात नहीं होता। पर जब देने की बात आती है तो वहां मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं ताकि एक भी वोट भाजपा को न मिले। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक गांव के पोलिंग बूथ पर जहां 100% मतदाता मुस्लिम हैं, कुल 2322 वोट पड़े। यहां पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 532 घर दिए गए हैं। इस पोलिंग बूथ पर भाजपा को एक भी वोट नहीं मिला। यहां पर सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह 87 हजार 434 वोटों से जीते। जब सरकारी योजनाओं का लाभ लिए जाने की बात थी तो यहां पर मुसलमानों को भी लाभ दिया गया, लेकिन जब चुनाव में वोट देने की बारी आई तो एक भी वोट भाजपा को नहीं मिला।

बता दें कि 18वीं लोकसभा में 24 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं। इस बार के लोकसभा चुनावों में 78 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे। 24 में से 21 सांसद इंडिया गठबंधन के हैं। जिसमें सबसे ज्यादा 7 सांसद कांग्रेस के हैं। तृणमूल कांग्रेस के 05 मुस्लिम सांसद हैं। समाजवादी पार्टी के 04, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के 03 और नेशनल कॉन्फ्रेंस के 02 सांसद हैं। इंडिया गठबंधन से इतर एआईएमआईएम के एक मुस्लिम सांसद हैदराबाद से जीतकर आए असदुद्दीन ओवैसी हैं। इसके अलावा जम्मू—कश्मीर के बारामूला से इंजीनियर राशिद और लद्दाख से मोहम्मद हनीफा भी जीतकर संसद पहुंचे हैं।

उत्तर प्रदेश में बसपा ने 1ृ9 मुसलमान प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। सारे के सारे चुनाव हार गए। सारा मुस्लिम वोट सपा और कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में गया। यूपी में सपा ने 37 सीटें जीतीं, आखिर क्यों? परिणाम के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने वाली बसपा सुप्रीमो तक को यह बोलना पड़ गया कि आगे से वह मुसलमानों को सोच समझकर टिकट देंगी। इससे पहले भी बसपा के कई मुस्लिम सांसद रह चुके हैं, लेकिन इस बार सारा मुस्लिम वोट बसपा के खाते से खिसककर कांग्रेस खाते में क्यों चला गया?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष द्वारा भाजपा को लेकर ऐसी धारणा बना दी गई है कि भाजपा मुसलमानों के लिए ठीक पार्टी नहीं है। जबकि ऐसा कतई नहीं है। मुसलमानों में भ्रम फैलाकर उनका वोट उनसे लिया जाता है। आजादी के बाद से लगातार ऐसा ही हो रहा है। मुसलमानों का इस्तेमाल सिर्फ वोट बैंक के तौर पर ही किया जाता रहा है। ऐसा ही इस बार भी हुआ। नतीजतन बसपा का सारा मुसलमान वोट बैंक खिसककर सपा और कांग्रेस के खाते में चला गया। बात सिर्फ यूपी की नहीं हैं लेकिन यूपी की चर्चा करना यहां इसलिए जरूरी हो जाता है कि क्योंकि यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं।

इसी तरह पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां भी मुसलमानों ने एक तरफा तृणमूल कांग्रेस को वोट किया, नतीजतन यहां पर तृणमूल कांग्रेस ने 29 सीटें जीतीं। तृणमूल के पांच मुस्लिम सांसद जीते हैं। अब इसे मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण न कहा जाए तो क्या कहा जाए? ऐसे ही असम में कांग्रेस ने जिन 3 सीटों पर जीत हासिल की है सारी मुस्लिम बहुल हैं। जाहिर है यहां भी मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हुआ। मकसद साफ था भाजपा को हराना, लेकिन लोगों का भरोसा फिर भी कायम रहा और देश में तीसरी बार राजग सरकार बनी। सरकार में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की वकालत करने वाले पत्रकारों, राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को सबसे पहले ध्रुवीकरण की राजनीति को तिलांजलि देकर सबका साथ सबका विकास की बात करनी होगी।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।