newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Amarmani Tripathi: कौन है अमरमणि त्रिपाठी?, जिसे योगी सरकार ने समय पूर्व रिहा करने का किया फैसला, तो मचा बवाल

Amarmani Tripathi: यह मामला उन दिनों का है, जब सूबे में बसपा की सरकार थी और कवियत्री मधुमति शुक्ला की हत्याकांड में जेल की हवा खा रहे अमरमणि त्रिपाठी बसपा सरकार में मंत्री थे। लिहाजा उनकी राजनीति में तूती बोलती थी। इस बीच उभरती हुई कवियत्री मधुमति शुक्ला पर उनका दिल आ गया। उस वक्त मधुमति छोटे-छोटे सम्मेलनों में हिस्सा लिया करती थीं।

नई दिल्ली। कवियत्री मधुमति शुक्ला हत्याकांड मामले में सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी की समय पूर्व रिहाई का मामला गरमा चुका है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल इस पूरे प्रकरण को लेकर बीजेपी पर हमलावर है। दरअसल, दोनों को उनके अच्छे व्यवहार की वजह से समय से पूर्व रिहा किया जा रहा है। उधर, दिवंगत कवियत्री मधुमति शुक्ला की बहन ने अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी की रिहाई के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया गया है। कोर्ट ने योगी सरकार को आठ सप्ताह के अंदर यह जवाब दाखिल करने के लिए कहा है कि आखिर किस आधार पर दोनों की समय पूर्व रिहाई की जा रही है। आइए, आगे आपको पूरा माजरा विस्तार से बताते हैं।


दरअसल, यह मामला उन दिनों का है, जब सूबे में बसपा की सरकार थी और अमरमणि त्रिपाठी बसपा सरकार में मंत्री थे। लिहाजा उनकी राजनीति में तूती बोलती थी। इस बीच उभरती हुई कवियत्री मधुमति शुक्ला पर उनका दिल आ गया। उस वक्त मधुमति छोटे-छोटे सम्मेलनों में हिस्सा लिया करती थीं। मधुमति की लोकप्रियता प्रदेश में तेजी से बढ़ती जा रही थी, तभी अमरमणि शुक्ला की नजर उभर रही कवियत्री मधुमति पर पड़ी। इसके बाद दोनों के बीच प्रेम-प्रसंग का सिलसिला शुरू हुआ। दोनों के बीच संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो गए कि मधुमति गर्भवती हो गई, जिस पर अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी ने आपत्ति जताई और मधुमति को बच्चा गिराने के लिए कहा, लेकिन उसने इनकार कर दिया और कहा कि मैं इस बच्चे को जन्म देकर रहूंगी। जिसे लेकर दोनों के बीच विवाद बढ़ गया, लेकिन इस प्रसंग के कुछ महीने बाद यानी की 9 मई 2003 को राजधानी लखनऊ के पेपर मिल स्थित अपार्टमेंट में दो बदमाशों ने घुसकर 24 वर्षीय कवियत्री मधुमति की गोली मारकर हत्या कर दी और इस हत्या का आरोप अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी पर लगा। बता दें कि जिस वक्त मधुमति की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, उस वक्त वह सात माह की गर्भवती थी, लेकिन किसी को भी इस बारे में जानकारी थी। दरअसल, मधुमति के गर्भवती होने की जानकारी उस वक्त सामने आई थी, जब उसका मेडिकल किया गया।

वहीं, मौके पर यानी की मधुमति के घर पर पुलिस पहुंची तो नौकर देशराज ने सारे राज खोल दिए। उसने पुलिस को बताया कि मधुमति और अमरमणि त्रिपाठी के बीच प्रेम-प्रसंग चल रहा था। इस बीच मधुमति गर्भवती हो गई। जिस पर अमरमणि की पत्नी ने आपत्ति जताई और उसे बच्चा गिराने के लिए कहा, लेकिन मधुमति ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी। इसके कुछ दिनों बाद ही मधुमति की गोली मारकर हत्या कर दी गई जिसके बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया, क्योंकि अमरमणि तत्कालीन बसपा सरकार में मंत्री थे और उन्हें पूरा विश्वास था कि उसे बचा लिया जाएगा। वहीं, हुआ भा कुछ ऐसा ही था। दरअसल, अमरमणि त्रिपाठी को क्लीनचिट नहीं दिए जाने को लेकर तत्कालीन बसपा सरकार ने सीआईडी के महानिदेशक को पद से हटा दिया था। तभी से ही प्रदेश की सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि प्रशासन अमरमणि पर मेहरबान है।

वहीं, मधुमति की बहन निधी शुक्ला ने अपनी बहन को इंसाफ दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। कई आलाधिकारियों और पलिस अधिकारियों से मिली लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और याचिका दाखिल कर मांग की कि केस का किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर किया जाए, क्योंकि निधी को शक था कि अगर मामले की सुनवाई अगर उत्तर प्रदेश में हुई, तो अमरमणि अपनी शक्तियों का दरुपयोग कर मामले को दबा सकता है। लिहाजा बाद में मामले को उत्तराखंड कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। जहां इस मामले की सुनवाई हुई।

इसके बाद विपक्ष के बढ़ते दवाब की वजह से मायावती सरकार ने सीबीआई को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी। सीबीआई जांच के बाद 2003 के सितंबर माह में अमरमणि को गिरफ्तार कर लिया गया। हत्याकांड में नाम आने के बाद भी अमरमणि 2007 में महाराजगंज से चुनाव लड़े और जबरदस्त जीत हासिल की। वहीं, गिरफ्तारी के तीन साल बाद उन्हें और उनकी पत्नी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि, सजा सुनाए जाने के बाद भी राजनीतिक हलकों में उनका रुतबा कम नहीं हुआ। उन्हें कल्याण सिंह सरकार में मंत्री भी बनाया गया था, लेकिन अपहरण कांड में नाम आने के बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। वहीं, अब सरकार ने उनके अच्छे आचरण को ध्यान में रखते हुए बरी करने का फैसला किया है, जिसके बाद सूबे की राजनीति गरम हो चुकी है।