नई दिल्ली। भारत देश की आजादी के लिए न जाने कितने ही लोगों ने अपनी जान तक गंवा दी। बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का तो नाम तक कोई नहीं जानता तो वहीं कुछ ऐसे भी थे जिनको आजादी के बाद भी देश में वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। आज हम आपको ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में बताते हैं। राजा महेंद्र प्रताप अगर चाहते तो शानो-शौकत के साथ अपना जीवन आराम से जी सकते थे लेकिन राजसी ठाठ-बाट को ठुकराकर अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वो स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
मुरसान रियासत राजपरिवार में हुआ था जन्म
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत राजपरिवार में हुआ था। वो राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र थे। बताते हैं कि हाथरस के राजा घनश्याम सिंह ने बाद में उनको गोद ले लिया था। उनकी शुरुआती शिक्षा हाथरस में हुई और इसके बाद अलीगढ़ के एमएओ (मोहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल) कॉलेज में उन्होंने एडमीशन लिया। उनका विवाह जींद की राजकुमारी बलबीर कौर के साथ हुआ था। यह भी कहा जाता है कि उनकी शादी में हाथरस से संगरूर के लिए दो विशेष ट्रेनें चलाई गई थीं।
अफगानिस्तान में बनाई थी भारत की पहली निर्वासित सरकार
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने देश की आजादी का बिगुल बजाते हुए साल 1915 में अफगानिस्तान जाकर भारत की पहली निर्वासित सरकार का गठन किया था और उनको भारत की इस पहली अस्थाई सरकार का राष्ट्रपति चुना गया था। मौलाना बरकतुल्ला खां को निर्वासित सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने बिना पासपोर्ट के स्विट्जरलैंड, जापान, जर्मनी, सोवियत संघ, चीन, अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की समेत 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी।
विदेशों में रहकर तैयार की देश की आजादी की जमीन
राजा महेंद्र प्रताप सिंह साल 1906 में कांग्रेस के कोलकाता सम्मेलन में शामिल हुए। इस सम्मेलन के बाद उनके जीवन का मकसद सिर्फ और सिर्फ देश की आजादी हो गया। उन्होंने स्वाधीनता की शपथ ली और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। ऐसा बताया जाता है कि 1914 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह की राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से मुलाकात हुई थी और उसी मुलाकात में उन्होंने विदेशों में रहकर देश की आजादी के लिए जमीन तैयार करने कठिन फैसला लिया। इस तरह वो लगभग 30 साल तक देश से बाहर रहकर आजादी की अलख जगाते रहे।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय, बीएचयू समेत कई शिक्षण संस्थाओं के लिए दी थी भूमि
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय के लिए अपनी जमीन दी थी। साल 1909 में वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय के लिए भी उन्होंने अपनी जमीन दान दी थी, उस समय उन्होंने पांच गांव दान में भी दिए थे। देश की प्रसिद्ध बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के लिए भी उन्होंने अपनी जमीन दान दी थी। इसके अलावा गुरुकुल वृंदावन, डीएस कॉलेज, एसवी कॉलेज, कायस्थ पाठशाला के लिए भी राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी जमीन दी थी।
आजादी के बाद लड़े थे निर्दलीय चुनाव, अटल बिहारी बाजपेई को दी थी शिकस्त
1946 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत वापस आए। भारत लौटकर उन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी से मुलाकात की। इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो राजा महेंद्र प्रताप राजनीति में सक्रिय हो गए। हालांकि कांग्रेस के साथ उनकी शुरू से नहीं बनी। 1957 के लोकसभा चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप मथुरा से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल कर संसद पहुंचे। इस चुनाव में उन्होंने अटल बिहारी बाजपेई को हराया था। हालांकि बलरामपुर सीट से अटल जी को जीत हासिल हुई थी। 29 अप्रैल 1979 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह का निधन हो गया था।
मोदी और योगी की बदौलत राजा साहब के नाम पर यूनिवर्सिटी
पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की बदौलत राजा महेंद्र प्रताप सिंह की स्मृति में उनके नाम पर अलीगढ़ में यूनिवर्सिटी बनाई गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साल 2019 में राजा साहब के नाम पर अलीगढ़ में यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा की थी जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 14 सितंबर 2021 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी।