newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Ayodhya Ram Mandir: जोधपुर में बने नेत्रों से देखेंगे अयोध्या में विराजमान रामलला, जानिए पूरी कहानी

Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या में पुरानी मूर्ति जो टेंट में विराजमान है। उस मूर्ति के लिए जोधपुर के पल्लव ने तैयार किया है ये नेत्र। यह नेत्र 22 कैरेट सोने के बने हुए हैं और इस पर बीकानेर में मीनाकारी का काम किया गया है। मीनाकारी का कार्य इतना बारीकी और उत्कृष्ट है कि देखने में रियलिस्टिक लुक देती है।

नई दिल्ली। दशकों बाद अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम होने जा रहा है। यह कार्यक्रम 21 से 23 जनवरी के बीच होगा। देश-विदेश से भगवान रामलला के लिए कई चीजे आई है, तो वहीं रामलाल के नेत्र सूर्यनगरी जोधपुर में तैयार किया गया है। भूगर्भ से असंख्य श्रद्धालुओं को निहारने वाले रामलला के नेत्र उन्हें सूर्यनगरी के एक युवक ने तैयार कर अर्पित किए हैं। इन नेत्रों को जोधपुर शहर निवासी 20 वर्षीय पल्लव ने तैयार किया है। बातचीत में उन्होंने बताया कि भगवान राम के नेत्रों को उन्होंने तैयार किया है और उनके चाचा वीरेंद्र ने नेत्रों पर पेंटिंग से कलाकृति की है।

बता दें कि अयोध्या में पुरानी मूर्ति जो टेंट में विराजमान है। उस मूर्ति के लिए जोधपुर के पल्लव ने तैयार किया है ये नेत्र। यह नेत्र 22 कैरेट सोने के बने हुए हैं और इस पर बीकानेर में मीनाकारी का काम किया गया है। मीनाकारी का कार्य इतना बारीकी और उत्कृष्ट है कि देखने में रियलिस्टिक लुक देती है। पल्लव बताते हैं कि उनके चाचा वीरेंद्र हमेशा से ही अयोध्या में श्रीराम भक्ति में तल्लीन रहे हैं और उनका वहां आना- जाना लगा रहता है। इस सुअवसर पर उन्हें यह कार्य मिला यह उनके लिए भाग्योदय से कम नहीं है। रामलल्ला के नेत्र श्रृंगार का कार्य उन्हें मिला और कुंन्दन की कलाकृति व पेंटिंग से तैयार कर वह स्वयं अयोध्या जाकर नेत्र मंदिर के महंत को देकर आए हैं।

पल्लव कहते हैं कि हमारा परिवार हमेशा से देश के विभिन्न मंदिरों के लिए कुंदन कारीगरी का काम करता है और ऐसे में जब अयोध्या मंदिर के पंडित जी से मुलाकात हुई तो हमें रामलाल के भूगर्भ में विराजमान होने वाली टेंट में रखी मूर्ति के लिए आंखे बनाने का कार्य दिया गया था। जानकारी के मुताबिक उनको यह आंख बनाने में 2 से 3 दिन लगे इसके बाद आंखों को बीकानेर भेजा गया जहां पल्लव के चाचा वीरेंद्र ने इस पर मीनाकारी का कार्य कर इस अयोध्या पहुंचाया गया था।