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जातिगत जनगणना की मांग पर ओबीसी महासभा का बड़ा आह्वान: समाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष तेज

पूर्व राज्यपाल श्री सत्यपाल मलिक ने अपने वक्तव्य में कहा, “जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं है, यह सामाजिक न्याय का आधार है। ओबीसी, एससी, और एसटी समुदायों को आज भी उनकी आबादी के हिसाब से संसाधन और अधिकार नहीं मिल रहे। शिक्षा और रोजगार में हमारी स्थिति दयनीय है। सरकार की योजनाओं और आरक्षण की समीक्षा तभी हो सकती है, जब सही आंकड़े हमारे पास हों।”

नई दिल्ली। सोमवार को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में ओबीसी महासभा ने जातिगत जनगणना की अनिवार्यता को लेकर एक महत्वपूर्ण संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें देशभर के प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में जातिगत जनगणना को ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और उनकी वास्तविक स्थिति को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया गया।

इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में पिछड़े वर्गों (ओबीसी), अनुसूचित जातियों (एससी), और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की सही स्थिति का आकलन करने के लिए जातिगत जनगणना बेहद जरूरी है।

वक्ताओं ने कहा कि ओबीसी के लिए केंद्र सरकार की नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27% आरक्षण सुनिश्चित है, लेकिन वास्तविकता यह है कि केंद्र में कुल 4.87 लाख नौकरियों में ओबीसी की हिस्सेदारी मात्र 14.6% है, जो उनके आरक्षण कोटे से काफी कम है।

शैक्षणिक संस्थानों में कम प्रतिनिधित्व: आईआईटी, आईआईएम, और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी समुदाय के प्रोफेसरों और उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व नगण्य है।
जनगणना से नीतिगत सुधार: जातिगत जनगणना के माध्यम से सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि समुदायों की सही सामाजिक और आर्थिक स्थिति सामने आए, ताकि विकास योजनाओं का लाभ वंचित वर्गों तक पहुंचे।

पूर्व राज्यपाल श्री सत्यपाल मलिक ने अपने वक्तव्य में कहा, “जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं है, यह सामाजिक न्याय का आधार है। ओबीसी, एससी, और एसटी समुदायों को आज भी उनकी आबादी के हिसाब से संसाधन और अधिकार नहीं मिल रहे। शिक्षा और रोजगार में हमारी स्थिति दयनीय है। सरकार की योजनाओं और आरक्षण की समीक्षा तभी हो सकती है, जब सही आंकड़े हमारे पास हों।”

ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य धर्मेंद्र सिंह कुशवाह ने कहा, “जातिगत जनगणना से यह स्पष्ट होगा कि देश के वंचित वर्गों को उनकी आबादी के अनुपात में अधिकार मिले हैं या नहीं। यह सामाजिक असमानता और भेदभाव को उजागर करने का माध्यम बनेगी।”

दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीर सिंह बघेल ने कहा, “जब तक समाज में सही प्रतिनिधित्व नहीं होगा, तब तक विकास और समानता का सपना अधूरा रहेगा। जनगणना के आंकड़े नीति निर्माण में मील का पत्थर साबित होंगे।”

राष्ट्रीय प्रवक्ता विश्वजीत रातोनिया ने जोर देते हुए कहा, “जातिगत जनगणना केवल एक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह ओबीसी समुदाय के लिए अपने अधिकारों को पहचानने और उन्हें सुरक्षित करने का आधार है। बिना सही आंकड़ों के, समाज में असमानता और बढ़ेगी।”

जातिगत जनगणना की आवश्यकता:
1. देश की पिछड़ी जातियों की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए यह जरूरी है।
2. रोजगार, शिक्षा और संसाधनों के उचित वितरण के लिए इसे लागू करना आवश्यक है।
3. जातिगत जनगणना से सरकार को नीतिगत सुधार करने में मदद मिलेगी और विकास की योजनाओं का लाभ सही वर्गों तक पहुंचेगा।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. अस्मिता सिंह, महिला अध्यक्ष ( ओबीसी महासभा) ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “मैं देश में जल्द से जल्द जातिगत जनगणना लागू करने की मांग करती हूँ।”

निष्कर्ष:

कार्यक्रम के अंत में, ओबीसी महासभा ने सरकार से जातिगत जनगणना को जल्द से जल्द लागू करने की मांग की है। महासभा ने चेतावनी दी कि यदि यह मांग पूरी नहीं हुई, तो ओबीसी समुदाय अपने हक के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन करेगा।