
अभिव्यक्ति की आजादी हमारे संविधान के मूलभूत अधिकारों में से एक है | स्वस्थ्य आलोचना को लोकतंत्र का आधार माना गया है | खुद देश की सर्वोच्च अदालत कह चुकी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आलोचना और असमहति बिल्कुल किसी प्रेशर कुकर के सेफ्टी वॉल्व की तरह हैं | लेकिन क्या खुद सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस असहमति और आलोचना के इस लोकतांत्रिक दायरे से बाहर हैं ?