नई दिल्ली। एक बात तो आईने की तरह साफ है कि अगर चीन अपने रुख में कोई तब्दीली नहीं लाया तो वो दिन दूर नहीं जब वो विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ जाएगा। चीन भरोसे के लायक नहीं रहेगा। कोई भी देश उस पर भरोसा करने से गुरेज करेगा। उसकी हालत कुछ वैसी ही हो जाएगी जैसी वर्तमान में पाकिस्तान की है। पहले ही चीन आतंकवादी समर्थित देश पाकिस्तान का समर्थन करने की वजह से आलोचकों के निशाने पर है। और वर्तमान में जिस तरह का उसका रुख है, अगर वह ज्यादा दिनों तक यूं ही जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं, जब उसकी हालत धोबी के उस कुत्ते की भांति हो जाएगी जो न घर का रहेगा और न घाट का। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर चीन ने अब ऐसा कौन-सा गुनाह कर दिया है कि आप उसके संदर्भ में ऐसी भूमिका रचा रहे हैं। तो चलिए हम आपको पूरा माजरा तफसील से बताते हैं।
दरअसल, पिछले कुछ माह से तंगहाली के दौर से गुजर रहे श्रीलंका ने चीन को बड़ा झटका दे दिया है। हुआ यूं था कि तंगहाली के आगे घुटना टेक चुके श्रीलंका ने भरोसे से चीन को अपनी कुछ परियोजनाएं संपन्न करने के ध्येय से सौंपी थी। लेकिन जब श्रीलंका को लगा कि चीन उन परियोजनाओं को पूरा करने की स्थिति में नहीं है और इसके विपरीत इन परियोजनाओं को पूरा करने की जगह चीन अपनी दादागिरी दिखाने पर ही उतारू हो गया था। पहले तो श्रीलंका ने चीन को आर्थिक मदद का आश्वासन दिया और बाद में कब्जा करने पर आमादा हो गया। जिसके जवाब में अब श्रीलंका ने हाईब्रीड पावर प्रोजेक्ट्स चीन से छीनकर भारत को सौंप दिए हैं। श्रीलंका के इस कदम को चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत इन प्रोजेक्ट्स को उत्तरी जाफाना से तीनों द्वीपों में मनाएगा। पिछले दिनों ही श्रीलंका ने भारत के इस वंचेर को मंजूरी दी थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में भारत के लिए तीसरा प्रोजेक्ट होगा। बता दें कि तीसरे प्रोजेक्ट को लेकर विगत सोमवार को हस्ताक्षर हुए थे। केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रसाद और श्रीलंका विदेश मंत्री के बीच इन मसलों को लेकर सहमति बनी थी। भारत को प्रोजेक्टस सौंपे जाने से पहले श्रीलंका ने इन्हें चीन की सिनोसिर इटोकिव कंपनी को सौंपा था। इसे एशियाई विकास बैंक का भी समर्थन प्राप्त है।
ध्यान रहे कि चीन के ये प्रोजेक्ट्स तमिलनाडु से 30 किमी दूर बनने वाले हैं। पहले भारत ने चीन को इन प्रोजेक्ट्स को ग्रांट के बजाए लोन पर पूरा करने की बात कही थी। उधर, भारत और श्रीलंका के बीच रक्षात्मक सहयोग को प्रगाढ करने की बात भी कही गई है। इस पहल को विगत सप्ताह ही सहमति दी गई थी। वहीं, भारत ने तंगहाली से गुजर रहे श्रीलंका की कई मौर्चों पर मदद करने का ऐलान किया है। पिछले दिनों तंगहाली से त्रस्त होकर कई श्रीलंकाई भारत में शरण ले चुके हैं। विदेश मुद्रा और भुगतान स्थिति के लिए भी संकट की स्थिति बनी हुई है। विश्व बिरादरी की तरफ से पूरी कोशिश की जा रही है कि श्रीलंका को इस बुरे दौर से बाहर निकाला जा सकें। लेकिन अब आगे चलकर श्रीलंका की आर्थिक दशा क्या रुख अख्तियार करती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।