बीजिंग। ईरान और सऊदी अरब ने 7 साल बाद फिर दोस्ती कर ली है। दोनों के बीच राजनयिक संबंध खत्म हो गए थे। अब दोबारा ये संबंध फिर शुरू होंगे। चीन की मध्यस्थता में लंबी बातचीत के बाद ईरान और सऊदी अरब के राजनयिकों ने फिर दोनों देशों की दोस्ती पर शुक्रवार को मुहर लगा दी। खास बात ये है कि ईरान और सऊदी अरब ने उस चीन की मध्यस्थता में दोबारा दोस्ती करने का फैसला किया, जिसके यहां उइगुर मुसलमानों पर तमाम जुल्म किए जाते हैं। ऐसे में साफ हो जाता है कि ईरान और सऊदी अरब को चीन के उइगुर मुसलमानों के दुख-दर्द से कुछ लेना-देना नहीं है।
सऊदी अरब और ईरान ने अब तक उइगुर मुसलमानों पर चीन में होने वाले जुल्म पर कभी भी खुलकर न तो चिंता जताई है और न ही इसके विरोध में बयान ही जारी किया है। अब चीन के सहयोग से ईरान से फिर राजनयिक संबंध स्थापित करने के फैसले की जानकारी सऊदी अरब के विदेश विभाग ने दी है। अब दोनों देश एक-दूसरे के यहां राजदूत और बाकी स्टाफ की नियुक्ति करेंगे। चीन की ओर से ईरान और सऊदी अरब के बीच दोस्ती कराने का बड़ा कारण अमेरिका को ठेंगा दिखाना भी है। ईरान पहले से ही अमेरिका का विरोधी है। वहीं, सऊदी अरब हमेशा अमेरिका का सहयोगी रहा है। ईरान जहां शिया संप्रदाय वाला देश है। वहीं, सऊदी अरब सुन्नी मत मानने वाला इस्लामी वतन है। दोनों के बीच दोस्ती से अमेरिका और सऊदी अरब के बीच तनाव हो सकता है।
Joint Trilateral Statement by the Kingdom of #Saudi Arabia, the Islamic Republic of #Iran, and the People’s Republic of #China. pic.twitter.com/MyMkcGK2s0
— Foreign Ministry ?? (@KSAmofaEN) March 10, 2023
ईरान अब तक यमन में शिया हूती विद्रोहियों को हथियारों की मदद देता रहा है। वहीं, सऊदी अरब हूती विद्रोहियों पर कार्रवाई करता है। अब ईरान और सऊदी अरब ने तय किया है कि वे एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। अभी ये पता नहीं है कि सऊदी अरब से समझौते के बाद ईरान अब हूती विद्रोहियों की मदद करेगा या नहीं। हूती विद्रोही कई बार ईरान से मिले हमलावर ड्रोन के जरिए सऊदी अरब पर हमले करते रहे हैं। इससे सऊदी अरब में पेट्रोलियम कारखानों को नुकसान भी हो चुका है।