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Erdogan Wins: रेसेप तैयप अर्दोआं फिर बने तुर्किए के राष्ट्रपति, जानिए इसका भारत और दुनिया पर क्या हो सकता है असर

अर्दोआं पिछले 2 दशक से तुर्किए की सत्ता पर कब्जा जमाए हुए हैं। इस बार माना जा रहा था कि वो लोगों की नाराजगी के कारण सत्ता गंवा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कमाल ने सबसे बड़ा वादा ये किया था कि वो राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती करेंगे, लेकिन जनता को लुभा नहीं सके। अर्दोआं की जीत भारत पर भी असर डाल सकती है।

अंकारा। 20 साल से तुर्किए के राष्ट्रपति पद पर काबिज रेसेप तैयर अर्दोआं एक बार फिर पद के लिए चुनाव जीत गए हैं। अर्दोआं ने रविवार को हुए दूसरे दौर के मतदान में अपने विरोधी कमाल कलचदरालू को पराजित कर दिया। अर्दोआं को 52.08 फीसदी और कलचदरालू को 48.92 फीसदी वोट मिले। इस तरह रेसेप तैयर अर्दोआं करीब 4 फीसदी मतों के अंतर से जीत गए। 6 दलों का साझा उम्मीदवार होने के बावजूद कमाल कलचदरालू जीत नहीं सके। कमाल को तुर्किए का गांधी कहा जाता है। तुर्किए में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए 50 फीसदी से ज्यादा वोट चाहिए होते हैं। तुर्किए में तो लोगों ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में वोट डाला ही, जर्मनी, फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में बसे वहां के 34 लाख लोगों ने भी वोटिंग की।

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रेसेप तैयप अर्दोआं और विपक्ष के प्रत्याशी कमाल कलचदरालू।

99 फीसदी वोट गिन लिए जाने के बाद खुद की जीत का एलान करने रेसेप तैयप अर्दोआं इस्तांबुल में अपने घर के बाहर आए। उनके घर के बाहर बड़ी तादाद में समर्थक जुटे थे। अर्दोआं ने अगले 5 साल तक सत्ता सौंपने के लिए लोगों को धन्यवाद दिया और बाय-बाय कमाल कहकर अपने प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदरालू पर तंज भी कसा। इससे पहले 14 मई को तुर्किए में राष्ट्रपति पद का मतदान कराया गया था। तब अर्दोआं को 49.24 फीसदी और कमाल को 45.07 फीसदी वोट मिले थे। एक अन्य उम्मीदवार सिनेन ओगन को 5.28 फीसदी वोट हासिल हुए थे। इसी वजह से दूसरे दौर की वोटिंग कराने की जरूरत आ पड़ी।

recip tayyep erdogan and pm modi

अर्दोआं पिछले 2 दशक से तुर्किए की सत्ता पर कब्जा जमाए हुए हैं। इस बार माना जा रहा था कि वो लोगों की नाराजगी के कारण सत्ता गंवा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कमाल ने सबसे बड़ा वादा ये किया था कि वो राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती करेंगे, लेकिन जनता को लुभा नहीं सके। बता दें कि तुर्किए का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद रेसेप तैयप अर्दोआं ने प्रधानमंत्री का पद खत्म कर सारे अधिकार और सरकार चलाने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति को दे दी थी। इसके लिए उन्होंने जनमत संग्रह कराया था। अर्दोआं के एक बार फिर तुर्किए का राष्ट्रपति बनने से दुनियाभर में काफी राजनीतिक असर देखा जा सकता है। उनके शासन में तुर्किए ने लगातार भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया है। पाकिस्तान को ड्रोन समेत अन्य हथियार भी अर्दोआं ने देने शुरू किए थे। तुर्किए में भूकंप के बाद भारत ने वहां मदद भेजी थी। इसके बाद भी अर्दोआं की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का पक्ष लिया था। वहीं, नाटो से भी अर्दोआं की पटरी ठीक से नहीं बैठती। उनकी सरकार ने पिछले दिनों स्वीडन को नाटो में शामिल करने के प्रस्ताव को वीटो कर दिया था। कई मसलों पर अमेरिका से भी उनकी ठन चुकी है। इनमें रूस से एस-400 मिसाइल रोधी प्रणाली खरीदने का मामला भी है। अमेरिका ने इस सौदे के कारण तुर्किए पर काट्सा कानून के तहत कार्रवाई भी की थी।