नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मनाई जाने वाली आमलकी या रंगभरी एकादशी आज है। हालांकि ये कल से शुरू हो चुकी है और आज भी मनाई जाएगी। सामान्य तौर पर एकादशी महीने में दो बार आती है। पहली पूर्णिमा के बाद और दूसरी अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी ‘कृष्ण पक्ष की एकादशी’ और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी ‘शुक्ल पक्ष की एकादशी’ कहलाती है। दोनों ही तरह की एकादशियों का हिंदू धर्म में बहुत महत्व होता है। वैसे से तो एकादशी का व्रत भगवान विष्णु जी को समर्पित है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी साल की अकेली ऐसी एकादशी है, जिसमें भगवान शिव की पूजा की जाती है। ये एकादशी ‘रंगभरी एकादशी’ के नाम से जानी जाती है। इसे आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करके उपवास रखते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से रोगों से छुटकारा मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं आंवले के पेड़ की उत्पत्ति कैसे हुई?
विष्णु पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के मुख से चंद्रमा के समान एक प्रकाशित बिंदु प्रकट हुआ और वो निकल कर पृथ्वी पर जा गिरा। हरि के मुख से निकले उसी बिंदू से आमलक अर्थात आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई। इस वृक्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इसके बाद भगवान विष्णु ने इस फल के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि इस फल के स्मरणमात्र से रोग एवं ताप का नाश हो जाएगा, साथ ही इसकी पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी। आंवले का फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है। इसके अलावा इस फल को खाने से तीन गुना शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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