नई दिल्ली। साल के प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी का व्रत रखा जाता है। ये दिन भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। यही कारण है कि इसे कुमार षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद को मुरुगन,कार्तिकेयन, सुब्रमण्यम आदि कई नामों से जाना जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत को दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। ऐसा मान्यता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा से भगवान का व्रत रखने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही संतान की प्राप्ति भी होती है। आइये जानते हैं क्या है इस व्रत का शुभ मुहुर्त और पूजा-विधि?
शुभ मुहूर्त
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि प्रारंभ 04 जुलाई शाम 6 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर 5 जुलाई शाम 7 बजकर 29 मिनट तक समाप्त हो जाएगा।
मघा नक्षत्र- 3 जुलाई सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 04 जुलाई सुबह 08 बजकर 44 मिनट तक
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र- 4 जुलाई सुबह 08 बजकर 44 मिनट से 5 जुलाई सुबह 10 बजकर 30 मिनट तक
पूजा-विधि
1. सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
2.इसके बाद भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प ले।
3.इसके बाद पूजा घर में जाकर सबसे पहले भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। उसके बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।
4.इस पूजा में सबसे पहले थोड़ा सा जल अर्पित करें।
5.इसके बाद भगवान को पुष्प, माला, फल, मेवा, कलावा, सिंदूर, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें।
6.अब भोग लगाकर दीपक-धूप आदि करके भगवान स्कंद-मंत्र का जाप करें।
7.अंत में विधिवत तरीके से भगवान की आरती करें और उन्हें प्रणाम करते हुए भूल चूक के लिए क्षमा मांग लें।
जाप-मंत्र
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Newsroompost इसकी पुष्टि नहीं करता है।