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Chaitra Pradosh Vrat 2022: इस दिन पड़ रहा चैत्र प्रदोष व्रत, जानें क्या है इसकी कथा और महत्व?

Chaitra Pradosh Vrat 2022: इस बार चैत्र माह का प्रदोष व्रत 29 अप्रैल मंगलवार को पड़ रहा है। इसमें पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करना तो अच्छा होता ही है, पूजा के साथ इस व्रत की कथा पढ़ने और सुनने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, तो आइये जानते हैं क्या है इस व्रत की कथा…

नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में कई देवी देवता पूजनीय हैं और सभी का विशेष महत्व और उनकी कथाएं हैं। भगवान की शिव की महिमा अपरंपार है और उन्हें मानने वाले साधकों की भी भरमार है। यही कारण है कि शिव की पूजा करने के लिए सनातन धर्म में कई व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। भगवान शिव को समर्पित कई पर्व हिन्दू धर्म में मनाए जाते हैं। उन्हीं व्रतों में से एक व्रत है प्रदोष व्रत। ये व्रत हर महीने 2 बार आता है। इस व्रत को हर महीने के दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि के दिन रखते हैं। हिन्दू कैलेंडर में साल की शुरुआत चैत्र मास से होती है। इस साल चैत्र महीना 19 मार्च से शुरू होकर 16 अप्रैल तक चलेगा। इस माह को मधुमास के नाम से भी जाना जाता है। इस बार चैत्र माह का प्रदोष व्रत 29 अप्रैल मंगलवार को पड़ रहा है। इसमें पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करना तो अच्छा होता ही है, पूजा के साथ इस व्रत की कथा पढ़ने और सुनने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, तो आइये जानते हैं क्या है इस व्रत की कथा…

प्रदोष व्रत की कथा

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ नियमित रूप से रोज भिक्षा मांगने के लिए जाती और शाम तक वापस लौट आती थी। एक दिन भिक्षा लेकर वापस लौटते समय उसने नदी के किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा, लेकिन ब्राह्मणी उसके विषय में कुछ नहीं जानती थी कि वो बालक कौन है, किसका है और कहां से आया है? दरअसल, उस बालक का नाम ‘धर्मगुप्त’ था और वो विदर्भ देश का राजकुमार था। उसके पिता, विदर्भ देश के राजा को  दुश्मनों ने एक युद्ध में मौत के घाट उतार दिया था और उनके राज्य पर कब्जा जमा लिया था। पिता के शोक में धर्मगुप्त की मां भी चल बसी। इसके बाद शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर निकाल फेंका। उस बालक की हालत को देखकर ब्राह्मणी को दया आ गई और उसने उसे अपना लिया। उसने उस बालक का पालन-पोषण अपने पुत्र के समान ही किया। कुछ दिनों के बाद वो ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट बुद्धि और विवेक के लिए विख्यात एक ऋषि ‘शाण्डिल्य’ से हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के माता-पिता की मौत के बारे में बताया, जिसे सुनकर ब्राह्मणी दुखी हो गई। इसके बाद ऋषि ने ब्राह्मणी को बेटों समेत प्रदोष व्रत करने की सलाह दी।

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ऋषि द्वारा बताये गए नियमों के अनुसार सभी ने व्रत सम्पन्न किया। लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है? कुछ दिनों के बाद जब दोनों बालक वन विहार कर रहे थे, उसी समय उन्हें वहां कुछ बेहद सुन्दर गंधर्व कन्याएं नजर आईं। राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की एक गंधर्व कन्या पर मोहित गए। कन्या ने धर्मगुप्त को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब ये पता चला कि वो बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह संपन्न करा दिया। इसके बाद राजकुमार ने अपने अथक प्रयासों से सेना एकत्रित की विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य स्थापित कर लिया। कुछ समय बाद उसे ये पता चला कि बीते दिनों में जो कुछ भी उसने हासिल किया है, वो प्रदोष व्रत का ही फल था। उसी समय से हिदू धर्म में ये मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत पूरे विधि-विधान से करेगा, साथ में उसकी कथा भी सुनेगा, उसे सौ जन्मों तक किसी भी तरह की परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Newsroompost इसकी पुष्टि नहीं करता है।