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Datta Purnima 2021: दत्त पूर्णिमा आज, जानिए त्रिदेव को प्रसन्न करने वाली पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा सबकुछ

Datta Purnima 2021: आज देशभर में दत्त पूर्णिमा मनाई जा रही है। दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष माहीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं।

नई दिल्ली। आज देशभर में दत्त पूर्णिमा मनाई जा रही है। दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष माहीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी, देवी अनसूया से हुआ था। तो चलिए इस लेख में आपको बताते हैं दत्त पूर्णिमा पर क्या है शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा…

datt purnima

जा का शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ- 18 दिसंबर, शनिवार सुबह 07.24 से
पूर्णिमा तिथि का समापन- 19 दिसंबर, रविवार सुबह 10.05 तक

ये हैं दत्त पूर्णिमा की पूजा विधि

सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर सन्ना करें
अब इसके बाद अब आपको स्वच्छ वस्त्र धारण करने हैं।
इब जिस स्थान पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जानी है उस स्थान पर चौकी बिछाएं और गंगाजल छिड़कर कर शुद्ध करें।
इसके बाद आपको भगवान दत्तात्रेय कि एक तस्वीर को वहां स्थापित करना है।
तस्वीर स्थापित करने के बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला अर्पित करनी चाहिए।
इस सब को करने के बाद आप भगवान दत्तात्रेय को विधिविधान से धूप और दीप दिखाएं।
आखिर में आरती करें और प्रसाद को सभी में वितरित करें।

Datta Purnima

भगवान दत्तात्रेय की कथा

कथा के मुताबिक, जब महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने ने के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचते हैं तो वो मां अनसूया से भोजन के लिए इच्छा प्रकट करते हैं। जिसके बाद जब मां भोजन लाती हैं तो त्रिदेव माता से शर्त रखते हैं कि वो उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। ऐसे में माता पहले तो थोड़ा संशय में पड़ जाती है और बाद में अपनी दिव्य दृष्टि से उन्हें पता चलता है कि वे ऋषि कोई और नहीं बल्कि स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। जब माता अनसूया को ये पता चलता है तो वो अत्रिमुनि के कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़क देती है। ऐसा करते ही ऋषि छह माह के शिशु बन जाते हैं इसके बाद माता अनसूया तीनों को भोजन कराती है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों के शिशु बनने के बाद तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचती हैं और माता अनसूया से क्षमा याचना करती हैं। तीनों देव भी अपनी गलती को स्वीकारते हैं और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह करते हैं। बाद में यहीं त्रिदेव माता अनसूया की कोख से दत्तात्रेय के रूप में जन्म लेते हैं और तभी से ही माता अनसूया की पुत्रदायिनी के रूप में पूजा की जाती है।