नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। पंचांग के मुताबित इस साल देवउठनी एकादशी 14 नवंबर 2021, रविवार को मनाई जाएगी। इसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। कहा जाता है कि आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए निंद्रासन पर चले जाते हैं, और चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर निंद्रासन से बाहर आते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान विष्णु के निंद्रासन में जाने के साथ ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो देवउठनी एकादशी पर खत्म होता है।
चातुर्मास महीने का समापन
बता दें कि वर्तमान समय में चातुर्मास चल रहा है, पंचांग की मानें तो चातुर्मास का आरंभ बीते 20 जुलाई 2021 को हुआ था। कहा जाता है कि चातुर्मास में किसी भी तरह का कोई शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। 14 नबंवर 2021 को देवउठनी एकादशी पर चातुर्मास समाप्त होगा। मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु आराम करते हैं। जिस दिन भगवान विष्णु का शयन काल आरंभ हो जाता है, उसी एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। वहीं जिस दिन भगवान विष्णु का शयन काल समाप्त होता है, उस दिन पड़ने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु का शयन काल समाप्त होते ही शुभ और मांगलिक कार्य भी शुरू कर दिए जाते हैं।
क्या है देवउठनी एकादशी का महत्व
बता दें कि देवउठनी एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में शुभ और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। एकादशी व्रत का वर्णन महाभारत की कथा में भी मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। जिसके बाद युधिष्ठिर ने विधि पूर्वक एकादशी व्रत को पूरा किया था। एकादशी के व्रत करने से न सिर्फ पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि सभी मनोकामनाएं भी को पूरी होती हैं।
तुलसी विवाह
बता दें कि देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है। इस दिन तुलसी की शालिग्राम से शादी की जाती है। पुराणों के अनुसार तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, और तुलसी को पवित्र माना गया है।