
नई दिल्ली। पैसे फंसे हों या कर्ज हो तो मात्र मंगल ग्रह का उपाय किया जाना चाहिये। नीचे दिये यंत्र के साथ मंगल का प्रभावी पौराणिक मंत्र भी दिया गया है साथ ही में मंगल के कुछ तांत्रिक उपाय भी किये जाते हैं उसमे भी कुछ विशेष मंत्र ही पढ़ने होते हैं।
व्यक्ति को ऋण मुक्त कराने में यह टोटका अवश्य सहायता करेगा । मंगलवार को शिव मन्दिर में जा कर शिवलिंग पर मसूर की दाल “ॐ ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय नम:´´ मंत्र बोलते हुए चढ़ाएं। जिन व्यक्तियों को निरन्तर कर्ज घेरे रहते हैं, उन्हें प्रतिदिन “ऋणमोचक मंगल स्तोत्र´´ का पाठ करना चाहिये। श्री सिद्धमंगल स्तोत्र एक संस्कृत भाषा का स्तोत्र है।
हिन्दू सनातन धर्म में मंगल की पूजा, अर्चना, स्तुति के लिए इसका पठन किया जाता है-
॥ श्रीपादराजम् शरणम् प्रपद्ये ॥
श्री मदनंत श्रीविभुषीत अप्पल लक्ष्मी नरसिंह राजा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥१॥
श्री विद्याधारी राधा सुरेखा श्री राखीधर श्रीपादा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥२॥
माता सुमती वात्सल्यामृत परिपोषित जय श्रीपादा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥३॥
सत्यऋषीश्र्वरदुहितानंदन बापनाचार्यनुत श्रीचरणा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥४॥
सवितृ काठकचयन पुण्यफल भारद्वाजऋषी गोत्र संभवा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥५॥
दौ चौपाती देव लक्ष्मीगण संख्या बोधित श्रीचरणा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥६॥
पुण्यरुपिणी राजमांबासुत गर्भपुण्यफलसंजाता ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥७॥
सुमतीनंदन नरहरीनंदन दत्तदेव प्रभू श्रीपादा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥८॥
पीठिकापुर नित्यविहारा मधुमतीदत्ता मंगलरुपा ।
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥९॥
॥ श्रीपादराजम् शरणम् प्रपद्ये ॥
अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कर्ज लेना ही पड़ता है। कई बार व्यक्ति कर्ज को जल्दी चुकाना चाहता है, लेकिन कर्ज का अंत ही नहीं होता है। ऐसे समय में ऋणमोचन हेतु ‘ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र’ का निरंतर पाठ करने से कर्ज शीघ्र ही चुकता होता है, साथ ही धन पाने के अन्य कई रास्ते भी निकल आते हैं। आइए पढ़ें…
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।
।।मूल-पाठ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।1
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।2
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।3
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।4
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।5
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।6
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।7
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।8
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्।।
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीऋण-मोचन महा-गणपति-स्तोत्र-मन्त्रस्य भगवान् शुक्राचार्य ऋषिः, ऋण-मोचन-गणपतिः देवता, मम-ऋण-मोचनार्थं जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास –
भगवान् शुक्राचार्य ऋषये नमः शिरसि, ऋण-मोचन-गणपति देवतायै नमः हृदि, मम-ऋण-मोचनार्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र
ॐ स्मरामि देव-देवेश।वक्र-तुण्डं महा-बलम्।
षडक्षरं कृपा-सिन्धु, नमामि ऋण-मुक्तये।।1।।
महा-गणपतिं देवं, महा-सत्त्वं महा-बलम्।
महा-विघ्न-हरं सौम्यं, नमामि ऋण-मुक्तये।।2।।
एकाक्षरं एक-दन्तं, एक-ब्रह्म सनातनम्।
एकमेवाद्वितीयं च, नमामि ऋण-मुक्तये।।3।।
शुक्लाम्बरं शुक्ल-वर्णं, शुक्ल-गन्धानुलेपनम्।
सर्व-शुक्ल-मयं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।4।।
रक्ताम्बरं रक्त-वर्णं, रक्त-गन्धानुलेपनम्।
रक्त-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।5।।
कृष्णाम्बरं कृष्ण-वर्णं, कृष्ण-गन्धानुलेपनम्।
कृष्ण-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।6।।
पीताम्बरं पीत-वर्णं, पीत-गन्धानुलेपनम्।
पीत-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।7।।
नीलाम्बरं नील-वर्णं, नील-गन्धानुलेपनम्।
नील-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।8।।
धूम्राम्बरं धूम्र-वर्णं, धूम्र-गन्धानुलेपनम्।
धूम्र-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।9।।
सर्वाम्बरं सर्व-वर्णं, सर्व-गन्धानुलेपनम्।
सर्व-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।10।।
भद्र-जातं च रुपं च, पाशांकुश-धरं शुभम्।
सर्व-विघ्न-हरं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।11।।
फल-श्रुति –
यः पठेत् ऋण-हरं-स्तोत्रं, प्रातः-काले सुधी नरः। षण्मासाभ्यन्तरे चैव, ऋणच्छेदो भविष्यति।
जो व्यक्ति उक्त “ऋण-मोचन-स्तोत्र’ का नित्य प्रातः काल पाठ करता है, उसका छः मास में ऋण-निवारण होता है।