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RSS: विजय कुमार की ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: क्या, क्यों, कैसे?’ पुस्तक संघ के बारे में सटीक जानकारी देने वाला एक स्त्रोत है

पुस्तक का पांचवां अध्याय पाठक को संघ के विचार और व्यवहार के बारे में बताता है, इस अध्याय में ‘संघ और दलित’ विषय पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्तक का अंतिम अध्याय बड़ा रोचक है जो आपको बताएगा वास्तव में ‘संघ परिवार’ है क्या?

नई दिल्ली।  भारत की विडंबना है कि यहाँ देश विरोधी गतिविधियां बहुत तीव्र गति से फैलती हैं। चाहे वो घटनाक्रम हो, आंदोलन हो, उर्दूवुड (बॉलीवुड) की फ़िल्में हों, या फिर वामपंथियों की पुस्तकें हों। रातोंरात प्रसिद्ध हो जाती हैं। इसका वर्तमान उदाहरण उर्दूवुड की अभी-अभी आई ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम पर कलंक फिल्म ब्रह्मास्त्र के प्रकरण से देख सकते हैं। सोशल मीडिया पर इस फिल्म के बॉयकॉट का ट्रेंड बहुत तीव्र और उग्र रूप से चला और ये फिल्म फ्लॉप भी हुई, लेकिन हमने ऐसे अनेक वीडियो देखे जिनमें लोग फिल्म देखने गए और फिल्म देखने के बाद फिल्म की बुराई करते रहे। इसका मतलब हुआ कि विरोध में भी हम पैसा लगाकर फिल्म देखेंगे चाहे जो भी हो। इसका परिणाम हुआ की जिस फिल्म को बिना कमाई किये फ्लॉप होना था, उसने कुछ पैसा कमाया जरूर और वो पैसा इस देश के लोगों का था। इसी का परिणाम था की मीडिया में रिवर्स मार्केटिंग जैसे प्रचार के टूल्स के बारे में छपा।

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भारत को भारत की दृष्टि से देखने वाले लेखकों की पुस्तकों के साथ क्या होता है? इसके अनेक उदाहरण हैं। पहले तो प्रचार की कमी सबसे दुखद पहलू है। और मान लीजिये यदि प्रचार हुआ भी तो कितने लोग खरीदते हैं और फिर पढ़ते हैं इस पर कुछ लिखना थोडा गड़बड़ हो सकता है। मैंने बहुत से लोगों को फ्री पीडीएफ मांगते और लेखक से ही पुस्तक उपहार मांगते हुए देखा है। इस देश की एक विडंबना और है, जिसको हम ‘सामूहिक अनुशासन की कमी’ कह सकते हैं। सामूहिक अनुशासन की कमी के कारण जो हानि हुई है या होती है उस पर लंबी चौड़ी पुस्तकें लिखी जा सकती हैं। इसी सामूहिक अनुशासन की कमी’ की समस्या को दूर करने और भारत को हिन्दू संस्कृति के उत्थान और हिन्दू मूल्यों के साथ विश्व का सिरमौर देश बनाने के लिए वर्ष 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।

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एक लम्बे समय तक संघ संबंधित साहित्य का आम आदमी को अता-पता न होता था। जिसका दुष्परिणाम कदाचित संघ आज तक भुगत रहा है। आज तक संघ के स्वयंसेवकों स्वतंत्रता संग्राम में संघ के योगदान के बारे में बताना पड़ता है। जबकि यह बात संघ के जीवनकाल अर्थात पिछले 96 वर्षों में देश के बच्चे बच्चे को पता होनी चाहिए थी। खैर! देर आये दुरुस्त आये। अब संघ के स्वयंसेवक साहित्य निर्माण की प्रक्रिया में जोर शोर से लगे हुए हैं। और हर मंच और मोर्चे पर संघ के आलोचकों और विरोधियों का ज्ञानवर्धन करने का काम कर रहे हैं। साहित्य निर्माण की इसी प्रक्रिया में एक पुस्तक प्रभात प्रकाशन से आयी है, पुस्तक का नाम है ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: क्या, क्यों, कैसे?’ लेखक हैं श्री विजय कुमार जिनका लेखन और संपादन से बड़ा प्रघाढ़ और लंबा संबंध है। इसी पुस्तक के प्रचार हेतू यह समीक्षा लिखने का प्रयास किया गया है।

पाँच अध्यायों और 184 पृष्ठों वाली इस पुस्तक की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध लेखक और राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने लिखी है। चार पृष्ठों की प्रस्तावना पाठक को इस पुस्तक को एक ही बार में पढ़कर समाप्त करने के लिए प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है। पुस्तक की भूमिका में लेखक लिखते हैं कि,”संघ को किताबों से नहीं समझा जा सकता फिर भी जिज्ञासुओं को संघ के बारे में कुछ प्राथमिक जानकारी दने में यह पुस्तक सहायक होगी। इसमें सिद्धांत की बाते कम और व्यवहार की बातें अधिक हैं।” पूरी पुस्तक इस पंक्ति को चरितार्थ करती है। मुझे यह पुस्तक गागर में सागर भरने जैसा प्रयास लगा, लेकिन है यह एक उत्कृष्ट प्रयास। पुस्तक का पहला अध्याय ‘संघ परिचय’ संघ से अनजान पाठक को बड़ी ही सरलता से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाह्य स्वरूप का दर्शन कराता है। यह अध्याय संघ के कार्यकर्ताओं को भी संगठन के वास्तविक बाहरी स्वरूप की सटीक जानकारी देता है। संघ से अनजान पाठक यदि इस अध्याय मात्र को भी पढ़ लेता है तो मुझे लगता है कि उसे संघ के बारे में थ्योरेटिकल जानकारी हो जायेगी।

संघ विरोधी आये दिन पूछते रहते हैं कि संघ ने देश के लिए क्या योगदान दिया है? इस पुस्तक में अगले तीन अध्याय इस प्रश्न का सीधा और प्रामाणिक उत्तर देते हैं, जिनमें दूसरे अध्याय ‘राष्ट्रीय संकट में संघ की भूमिका’ अध्याय में लेखक ने 31 ऐसे कालखंडों और घटनाक्रमों का न्यूनाधिक विस्तृत विवरण दिया है, जिसको जब पाठक पड़ेगा तो उसे स्वतः ज्ञात हो जायेगा कि संघ विरोधियों का उक्त प्रश्न कितना खोखला है। पुस्तक के तीसरे अध्याय में संघ ने अपनी जीवन यात्रा में जिन संकटों का सामना किया है और निष्कलंक विजयी होकर प्रकट हुआ है उनका संक्षिप्त विवरण है। इसी अध्याय में एक भाग ‘कुछ अटपटे प्रश्न’ है जो वास्तव इस पुस्तक को बहुत रोचक बनाता है। इस भाग में पंद्रह ऐसे अटपटे प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं जो आरोप स्वरुप संघ पर लगाए जाते हैं, जैसे संघ में महाराष्ट्र वालों का वर्चस्व है, संघ में बड़े पदों पर केवल ब्राह्मणों का कब्जा होता है, संघ महिला विरोधी है, संघ फासीवादी संगठन है आदि। इन प्रश्नों के उत्तर बड़े ही सहज भाषा और प्रमाणिकता के साथ देने का प्रयास किया गया है।

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पुस्तक का पांचवां अध्याय पाठक को संघ के विचार और व्यवहार के बारे में बताता है, इस अध्याय में ‘संघ और दलित’ विषय पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्तक का अंतिम अध्याय बड़ा रोचक है जो आपको बताएगा वास्तव में ‘संघ परिवार’ है क्या? आमतौर पर लोग संघ और भाजपा के साथ विश्व हिन्दू परिषद जैसे 2- 3 संगठनों को संघ परिवार समझते हैं। लेकिन यह अध्याय आपको 38 ऐसी राष्ट्रव्यापी संगठनों के बारे में बताएगा जो संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवक स्वतंत्र रूप से देश सेवा में चला रहे हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक एक पाठक को संघ के बारे में सटीक जानकरी देती है और संघ विरोधियों को उनके आरोपों का उत्तर देकर सोचने पर विवश करती है। देश के नागरिकों में सामूहिक अनुशासन का भाव जगाकर, संगठित होकर देश को विश्व का सिरमौर बनाने के लक्ष्य पर काम करने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को थेयोरेटिक्ली जानने के लिए यह पुस्तक सार्थक है। इसमें सिद्धांत की बाते कम और व्यवहार की बातें अधिक हैं।” पूरी पुस्तक इस पंक्ति को चरितार्थ करती है। मुझे यह पुस्तक गागर में सागर भरने जैसा प्रयास लगा, लेकिन है यह एक उत्कृष्ट प्रयास।

पुस्तक का पहला अध्याय ‘संघ परिचय’ संघ से अनजान पाठक को बड़ी ही सरलता से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाह्य स्वरूप का दर्शन कराता है। यह अध्याय संघ के कार्यकर्ताओं को भी संगठन के वास्तविक बाहरी स्वरूप की सटीक जानकारी देता है। संघ से अनजान पाठक यदि इस अध्याय मात्र को भी पढ़ लेता है तो मुझे लगता है कि उसे संघ के बारे में थ्योरेटिकल जानकारी हो जायेगी। संघ विरोधी आये दिन पूछते रहते हैं कि संघ ने देश के लिए क्या योगदान दिया है? इस पुस्तक में अगले तीन अध्याय इस प्रश्न का सीधा और प्रामाणिक उत्तर देते हैं, जिनमें दूसरे अध्याय ‘राष्ट्रीय संकट में संघ की भूमिका’ अध्याय में लेखक ने 31 ऐसे कालखंडों और घटनाक्रमों का न्यूनाधिक विस्तृत विवरण दिया है, जिसको जब पाठक पड़ेगा तो उसे स्वतः ज्ञात हो जायेगा कि संघ विरोधियों का उक्त प्रश्न कितना खोखला है। पुस्तक के तीसरे अध्याय में संघ ने अपनी जीवन यात्रा में जिन संकटों का सामना किया है और निष्कलंक विजयी होकर प्रकट हुआ है उनका संक्षिप्त विवरण है।

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इसी अध्याय में एक भाग ‘कुछ अटपटे प्रश्न’ है जो वास्तव इस पुस्तक को बहुत रोचक बनाता है। इस भाग में पंद्रह ऐसे अटपटे प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं जो आरोप स्वरुप संघ पर लगाए जाते हैं, जैसे संघ में महाराष्ट्र वालों का वर्चस्व है, संघ में बड़े पदों पर केवल ब्राह्मणों का कब्जा होता है, संघ महिला विरोधी है, संघ फासीवादी संगठन है आदि। इन प्रश्नों के उत्तर बड़े ही सहज भाषा और प्रमाणिकता के साथ देने का प्रयास किया गया है। पुस्तक का पांचवा अध्याय पाठक को संघ के विचार और व्यवहार के बारे में बताता है, इस अध्याय में ‘संघ और दलित’ विषय पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्तक का अंतिम अध्याय बड़ा रोचक है जो आपको बताएगा वास्तव में ‘संघ परिवार’ है क्या? आमतौर पर लोग संघ और भाजपा के साथ विश्व हिन्दू परिषद जैसे 2- 3 संगठनों को संघ परिवार समझते हैं। लेकिन यह अध्याय आपको 38 ऐसी राष्ट्रव्यापी संगठनों के बारे में बताएगा जो संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवक स्वतंत्र रूप से देश सेवा में चला रहे हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक एक पाठक को संघ के बारे में सटीक जानकरी देती है और संघ विरोधियों को उनके आरोपों का उत्तर देकर सोचने पर विवश करती है। देश के नागरिकों में सामूहिक अनुशासन का भाव जगाकर, संगठित होकर देश को विश्व का सिरमौर बनाने के लक्ष्य पर काम करने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को थेयोरेटिक्ली जानने के लिए यह पुस्तक सार्थक है।