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किसान आंदोलन के बहाने क्या करना चाहते हैं तथाकथित किसान?

किसान (Farmer) एक ही मांग पर अड़े हैं कि तीनों नए कृषि कानून (agricultural law)रद्द होने चाहिए। जबकि सरकार कह रही है कि कानून में जिस चीज से आपको दिक्कत है, उसमें हम संशोधन करने के लिए तैयार हैं। लेकिन तथाकथित किसान एक ही मांग पर अड़े हैं कि कानून रद्द होना चाहिए। समझ में नहीं आता अगर सरकार दिक्कत को दूर करने के लिए तैयार है तो कानून रद्द की मांग पर ये किसान अडिग क्यों हैं?

किसानों ने दिल्ली को चारों से घेर रखा है 9 दौर की बातचीत किसानों और सरकार के बीच हो चूकी है, लेकिन समाधान कोई नजर नहीं आ रहा। जहां सरकार का कहना है कि दो चार कदम तुम चलो और छह कदम हम चलते हैं तो शायद समाधान निकल जाएगा। लेकिन तथाकथित किसान हैं कि मानने को तैयार नहीं है। मैं स्वयं एक पत्रकार हूं और लगातार इस आंदोलन को कवर कर रहा हूं। इस तथाकथित किसान आंदोलन में मुझको किसानों वाली कोई बात नहीं लगी है। ऐसा नहीं है कि इस आंदोलन में किसान नहीं है, किसान हैं लेकिन सभी किसान हैं ऐसा भी नहीं है।

kisan andolan

किसान एक ही मांग पर अड़े हैं कि तीनों नए कृषि कानून रद्द होने चाहिए। जबकि सरकार कह रही है कि कानून में जिस चीज से आपको दिक्कत है, उसमें हम संशोधन करने के लिए तैयार हैं। लेकिन तथाकथित किसान एक ही मांग पर अड़े हैं कि कानून रद्द होना चाहिए। समझ में नहीं आता अगर सरकार दिक्कत को दूर करने के लिए तैयार है तो कानून रद्द की मांग पर ये किसान अडिग क्यों हैं? लेकिन यह समझ में जरूर आता है कि किसानों के मंच से कृषि बिलों पर कम और नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा बातचीत होती है। धर्म विशेष के खिलाफ ज्यादा बातचीत को तवज्जो दी जा रही है। सिख और मुस्लिम एकता के ज्यादा नारे लगते हैं। वहीं कृषि बिल का समर्थन करने वाले देश के प्रगतिशील किसान पद्मश्री अवार्डी कंवलसिंह चौहान को 35 इंटरनेशनल कॉल के जरिए धमकियां मिलती हैं। उन्होंने बस इतना ही कहा था कि बिल में कुछ बातों की कमी है, अगर वो ठीक हो जाए तो ये नया कृषि बिल किसानों के लिए फायदे का बिल होगा। जिस पर कृषि मंत्री ने प्रगतिशील किसानों के कहने पर उन कमियों की दूर करने की बात कही।

Farmer Protest PC

लेकिन जैसे ही प्रगतिशील किसान बिलों का समर्थन करके अपने घर तक आते हैं तो उन्हें रात के समय कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, पंजाब और हरियाणा से उनके पास 35 कॉल आती है कि तुमने बिल का समर्थन क्यों किया। बात ये समझ में नहीं आती कि कृषि कानून के समर्थन करने पर प्रगतिशील किसानों को विदेशों से फोन पर धमकियां क्यों आती हैं? और किसान आंदोलन का मकसद कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से क्या मतलब है। मतलब साफ है कि किसान आंदोलन के बहाने ये तीन कानूनों को रद्द करवाकर ऐसे लोग अपनी जीत और कहीं और नए आंदोलन की तैयारी में लगे हुए हैं।

कौन हैं ये किसान?

इन्हें खालिस्तानियों व इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा आर्थिक बल दिया जा रहा है। पैरों के मसाज करने की स्वचालित मशीन की आवश्यकता एक किसान को तो कभी नहीं होती। वो तो नंगे पांव ही खेत में काम करता है। तो फिर कौन हैं ये किसान? जिनको तंदूरी चिकन के साथ पिज़्ज़ा भी चाहिए, क्या ये वही बिचौलिये व आढ़ती हैं जिनको इन कृषि सुधारों से सबसे बड़ी हानि होने वाली है? क्या ये वही हैं जिनकी मंडियों व सरकारी गोदामों के बाबुओं से मिलीभगत की वजह से किसान को उसकी उपज के सही दाम नहीं मिलते?

इस सबके बीच एक दबा प्रश्न यह है कि केंद्र सरकार क्यों नहीं इन भ्रांतियों को किसानों के मन से दूर करती है? यदि ये किसान नहीं हैं तो क्यों नहीं इन आढ़तियों बिचौलियों का पर्दाफाश करती है? या फिर सही में यह सुधार किसानों के खिलाफ है? कहीं पर कोई तो सत्य बोल रहा है। अडानी, अंबानी के सहयोगी के रूप में सरकार की छवि को प्रस्तुत किया जा रहा है। अडानी व अंबानी आगे आकर अपनी भूमिका क्यों नहीं स्पष्ट करते?

Delhi Farmer Protest

वहीं दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल नए कृषि कानून को अपने राज्य में लागू करने वाले पहले मुख्यमंत्री बन कर भी किसानों के लिए लंगर लगाने की व्यवस्था करते हैं क्योंकि उनको अगले वर्ष पंजाब में चुनाव लड़ना है। देश विरोधी इस्लामी व वामपंथी ताकतें खालिस्तानियों के नाम पर भोले-भाले किसानों को सड़कों पर लाकर CAA व 370 का बदला लेना चाहते हैं। चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बीच उसके इस आंदोलन को आर्थिक सहयोग पहुंचाने का जरिया ये शक्तियां हो सकती हैं। केंद्र सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेकर इसके दूरगामी दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर कुछ समाधान निकालना चाहिए।

(लेख के लेखक ललित कौशिक पेशे से पत्रकार हैं और इसमें व्यक्त विचार इनके निजी हैं)