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आखिर पाकिस्तान की भाषा क्यों बोल रहे कांग्रेस और इंडी गठबंधन के नेता

लोकसभा में देश की तीसरी बड़ी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बोल रहे हैं कि जब भी पाकिस्तान से सवाल खड़ा करोगे तो चीन से भी मुकाबला करना पड़ेगा। पीओके की तरफ देखोगे तो चीन से मुकाबला करना पड़ेगा। कांग्रेस नेता अजय राय ने खिलौना राफेल विमान हाथ में लेकर उस पर नींबू मिर्च लटका कर सोशल मीडिया पर आकर सवाल उठा रहे हैं।

जब भी किसी देश से युद्ध होता है या युद्ध जैसी स्थिति होती है तब आपसी मतभेद भूलकर सब राजनीतिक दल एक मंच पर आकर सरकार के साथ खड़े होते हैं। मीडिया में कोई बयान नहीं आता, यह देशहित के लिए आपसी सहमति से होता है। ऐसा इसलिए ताकि शत्रु देश नेताओं की आपसी बयानबाजी को आधार बनाकर प्रोपेगेंडा कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को पीड़ित साबित कर सहानुभूति बटोरने में कामयाब न हो जाए। दूसरी तरफ कांग्रेस और इंडी गठबंधन के नेता हैं तो अपने बयानों से अपने ही देश की सरकार को सांसत में डाल रहे हैं। वे पाकिस्तान परस्त भाषा बोल रहे हैं। यहां तक कि पाकिस्तानी संसद में विपक्ष की तारीफ हो रही है।

उदाहरण के तौर पर पाकिस्तानी संसद में वहां के सांसद सैफुल्लाह अब्रू ने स्पष्ट तौर पर कहा, ”भारत की पूरी अपोजिशन पहलगाम हमले की मजम्मत कर रही है। फिर चाहे वह दिल्ली की आम आदमी पार्टी हो या फिर उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी। कोई भी मोदी के साथ नहीं हैं। सभी विरोध कर रहे हैं। किसी ने भी मोदी के साथ नहीं दिया। सभी ने कहा कि ये तुम्हारे कारण हुआ है, क्योंकि तुम पहले ही मुसलमानों के खिलाफ हो और अब तुम्हें अपने आप को ढकने के लिए कोई न कोई कवर चाहिए।” जहां एक ओर पूरा विश्व यहां तक कि अमेरिका भी इस हमले के बाद भारत के साथ खड़ा है, वहीं हमारा ही विपक्ष इस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहा है जो पाकिस्तानी राजनीतिज्ञों को रास आ रही है। इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है।

राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा ने पहलगाम हमले के दो—तीन दिन बाद ही बयान दे दिया था कि हमला इसलिए हुआ क्योंकि मोदी सरकार में मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है। लोकसभा में देश की तीसरी बड़ी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बोल रहे हैं कि जब भी पाकिस्तान से सवाल खड़ा करोगे तो चीन से भी मुकाबला करना पड़ेगा। पीओके की तरफ देखोगे तो चीन से मुकाबला करना पड़ेगा। कांग्रेस नेता अजय राय ने खिलौना राफेल विमान हाथ में लेकर उस पर नींबू मिर्च लटका कर सोशल मीडिया पर आकर सवाल उठा रहे हैं।

जब पूरा देश आतंकियों द्वारा दिए गए घाव से कराह रहा है, हर देशवासी गुस्से से भरा हुआ है ऐसे में इस तरह के बयान क्या अपनी ही सरकार और सेना का मनोबल गिराने वाले नहीं हैं। पाकिस्तान इसी तरह के बयानों को आधार बनाकर प्रोपेगेंडा करने में जुटा है। बावजूद इसके ओछी राजनीति के लिए हमारे देश के नेता इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। युद्ध जीतने के लिए सिर्फ हथियार ही जरूरी नहीं होते, सही रणनीति, सही सूचना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शत्रु देश को अलग—थलग करना भी जरूरी होता है।

युद्ध जीतने के लिए प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल कैसे किया जाता है इसका एक बड़ा अच्छा उदाहरण इंग्लैंड और अर्जेंटीना के बीच हुए एक द्वीप को लेकर लिया जा सकता है। फॉकलैंड द्वीप समूह को अर्जेंटीना में ‘इस्लास माल्विनास’ के नाम से जाना जाता है। यह दक्षिण अटलांटिक महासागर में स्थित एक द्वीप समूह है। इस द्वीप पर अर्जेंटीना और ब्रिटेन का पिछली दो शताब्दियों से विवाद है। ब्रिटेन ने 1833 में इस द्वीप पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया। 2 अप्रैल 1982 को अर्जेंटीना की सैन्य सरकार ने अचानक फॉकलैंड द्वीपों पर आक्रमण कर उन पर फिर से कब्जा कर लिया। अर्जेंटीना के सैन्य तानाशाह लियोपोल्दो गाल्तियेरी ने अपने देश के राष्ट्रीय गौरव को फिर स्थापित करने और जनता में पनप रहे असंतोष से ध्यान भटकाने के लिए द्वीपों पर कब्जा किया था। उस समय ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने द्वीपों को फिर से हासिल करने के लिए नौसेना का बेड़ा रवाना कर दिया। अर्जेंटीना की एयरफोर्स ने एक ब्रिटिश युद्धपोत को डुबा दिया। हालांकि बाद में इंग्लैंड की जीत हुई और अर्जेंटीना ने आत्मसमर्पण कर दिया।

इंग्लैंड ने युद्ध को जीतने के लिए सिर्फ सेना का सहारा ही नहीं लिया बल्कि अपने सूचना तंत्र का इस्तेमाल कर अर्जेंटीना के खिलाफ एक प्रोपेगेंडा खड़ा किया। इंग्लैंड ने युद्ध में जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए सुनियोजित प्रचार के तरीके अपनाए, यहाँ तक कि अर्जेंटीना की विपक्ष और जनता में भी मिलिटरी सरकार के खिलाफ असंतोष के बीज बोये। उदाहरण के तौर पर उसने बीबीसी और अन्य मीडिया संस्थानों को ‘राष्ट्रहित’ में सीमित और चयनित सूचनाएं प्रसारित करने का निर्देश दिया। ताकि जनता के बीच यह मैसेज जाए कि इंग्लैंड कुछ गलत नहीं कर रहा बल्कि न्यायोचित कर रहा है। उसने युद्ध को इस तरह प्रस्तुत किया कि एक लोकतांत्रिक देश के क्षेत्र पर एक सैन्य तानाशाह ने जबरन कब्जा किया। इससे वैश्विक स्तर पर इंग्लैंड को अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों का समर्थन मिला।

आज केंद्र सरकार ऐसा ही कर रही है। इसमें कोई दोराय नहीं कि पाकिस्तान ने आतंकी भेजकर यह कायराना हरकत करवाई हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वह अलग—थलग पड़ चुका है। ऐसे में जबकि कुछ निर्णायक होने की परिस्थितियां बन रही हैं, तो विपक्ष को एकजुट होकर सरकार के साथ खड़े होने की जरूरत है। ताकि वैश्विक स्तर पर यह संदेश जाए कि जब देश की बात हो तो हम सब साथ हैं। इसके उलट विपक्षी नेता ऐसे बयान देने में जुटे हैं, जिनसे पाकिस्तान को नैतिक बल मिल रहा है। अपनी संसद में वह यहां के विपक्ष की तारीफ कर रहा है। इससे ज्यादा शर्मनाक और डूब मरने वाली बात विपक्ष के लिए कुछ और हो ही नहीं सकती। राजनीति में इतने निचले स्तर तक भी कांग्रेस और इंडी गठबंधन के नेता गिर सकते हैं इसकी तो कल्पना भी किसी को नहीं थीं, लेकिन विपक्ष ने इस मामले में इस तरह के ओछे बयान देकर यह साबित कर दिया कि वह सिर्फ सत्ता प्राप्त करना चाहता है। इसके लिए भले ही उसे देश हित से ही समझौता क्यूं न करना पड़े।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।