नई दिल्ली। आरबीआई ने अधिसूचना जारी कर अब 2 हजार के नए नोट नहीं छापने की जानकारी दी है। हालांकि, आर्थिक जानकारों को इससे ज्यादा हैरानी नहीं हो रही है, क्योंकि 2 हजार के नोट 2018-2019 से ही छपना बंद कर दिए गए थे। अब विरले ही लोगों के पास 2 हजार के नोट पाए जाते हैं। उधर, एटीएम में भी अब कभी- कभी ही 2 हजार के नोट के दर्शन होते हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर सरकार ने 2 हजार के नोट को ना छापने का फैसला क्यों किया है? तो आर्थिक विश्लेषक इसके बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि काला धन पर प्रहार करने के लिए यह फैसला लिया गया है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई है। कांग्रेस ने इसे नोटबंदी से जोड़ दिया है। आपको बता दें कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार के इस फैसले पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि हमारे स्वयंभू विश्वगुरु की खासियत। पहला अधिनियम, दूसरा विचार (फास्ट)। 8 नवंबर 2016 के विनाशकारी तुगलकी फरमान के बाद इतनी धूमधाम से पेश किए गए 2000 रुपये के नोट अब वापस लिए जा रहे हैं।
लेकिन बतौर पाठक आपको यह जानना जरूरी है कि यह 2016 वाली नोटबंदी नहीं है , बल्कि उससे अलग है। इसमें किसी विशेष नोट को ही आर्थिक लेन देन से बाहर करने का फैसला किया गया है, लेकिन नोटबंदी के तहत 500 और 1000 के नोट को पूरी तरह से चलन से बाहर कर दिया गया था और इसके बाद 500 और 2 हजार के नए नोट देखने को मिले थे। वहीं अब इस 2 हजार के नोट को सरकार ने नहीं छापने का फैसला किया है। इसके अलावा जिनके पास अभी 2 हजार के नोट हैं, उन्हें आगामी 30 सितंबर तक इसे स्थानीय बैंक में वापस कर इसके एवज में दूसरे नोट प्राप्त करने का विकल्प दिया गया है, लेकिन इस रिपोर्ट में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि हमारे देश में नोटबंदी कोई नई बात नहीं है।
1946 में हुई पहली नोटबंदी
शायद आपको पता ना हो कि सबसे पहली बार नोटबंदी 1946 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान की गई थी। 12 जनवरी, 1946 को भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल, सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने उच्च मूल्य वाले बैंक नोट बंद करने का अध्यादेश प्रस्तावित किया। इसके साथ ही 26 जनवरी रात 12 बजे के बाद से 500 रुपये, 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के उच्च मूल्यवर्ग के बैंक नोट अमान्य हो गए।
1978 में दूसरी नोटबंदी
इसके बाद 1978 में नोटबंदी हुई थी। तब जनता पार्टी के नेतृत्व में काले धन पर अंकुश लगाने के ध्येय से नोटबंदी का ऐलान किया गया था। तत्कालीन सरकार द्वारा 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था। उस वक्त उस समय देसाई सरकार में वित्त मंत्री एच.एम. पटेल थे जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे।
2016 में तीसरी नोटबंदी
इसके बाद केंद्र की मोदी सरकार ने आठ नवंबर को नोटबंदी का ऐलान किया था। इसके तहत 500 और हजार के नोट को चलन से बाहर कर दिया गया था। विपक्षियों द्वारा सरकार के इस फैसले की खूब आलोचना की गई थी । लेकिन मोदी सरकार ने इस फैसले के पीछे की वजह काले धन पर अंकुश लगाना बताया था। जिसका जवाब आज भी विपक्ष की ओर से मांगा जाता है कि नोटंबदी से कितना कालाधन बाहर आया है?