नई दिल्ली। अगले 5 साल तक पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से निजात मिलने के आसार नहीं हैं। ये एलान खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में किया है। मंगलवार को राज्यसभा में वित्त मंत्री ने इसका ठीकरा यूक्रेन में जारी युद्ध और कांग्रेस की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के मत्थे मढ़ा। सीतारमण ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में सरकारी तेल कंपनियों को 2 लाख करोड़ के ऑयल बॉन्ड जारी किए थे। उस दौरान पेट्रोल और डीजल पर इन बॉन्ड के जरिए सब्सिडी दी गई थी। अब इस सब्सिडी पर लोगों को खर्च करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि साल 2026 तक इन बॉन्ड की सीमा तय की गई थी। इसके मायने हैं कि अभी 5 साल तक लोगों को इसका खामियाजा भुगतना होगा।
सीतारमण ने ये भी कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान भी केंद्र ने तेल कंपनियों को बॉन्ड जारी किए थे, लेकिन उन बॉन्ड और यूपीए सरकार के दौरान जारी बॉन्ड में काफी अंतर है। उन्होंने कहा कि 10 साल पहले जो बोझ डाला गया था, उसका खामियाजा अब सबको चुकाना पड़ रहा है। बता दें कि यूपीए सरकार के दौरान भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव 90 डॉलर से ज्यादा हो गए थे। तब सरकार ने बॉन्ड जारी कर आम जनता पर बोझ नहीं पड़ने दिया था।
सीतारमण ने ये भी कहा कि फिलहाल यूक्रेन युद्ध की वजह से कच्चे तेल के उत्पादन और उसकी सप्लाई पर बड़ा असर पड़ा है। मुद्रा के अवमूल्यन की वजह से भी कच्चा तेल महंगा खरीदना पड़ता है। उन्होंने कहा कि युद्ध खत्म होने पर कुछ राहत मिल सकती है। पेट्रोल और डीजल पर सेस और सरचार्ज लगाने के विपक्ष के आरोपों पर वित्त मंत्री ने कहा कि साल 2013 से अब तक सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेस के जरिए 3.9 लाख करोड़ हासिल करने का अंदाजा लगाया था, लेकिन सेस से 3.8 लाख करोड़ का ही राजस्व आया है। उन्होंने बताया कि सेस से मिली ये धनराशि राज्यों में जारी केंद्रीय योजनाओं पर खर्च किया जाता है।