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क्यों जरूरी है कोरोना मरीजों के लिए एंटीबॉडी, समझें क्या है प्लाज्मा की पूरी थ्योरी

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। भारत और अमेरिका समेत कई बड़े मुल्क इसकी चपेट में हैं। एक तरफ जहां दुनिया के तमाम मुल्क, जहां अब इस वायरस से धीरे-धीरे मुक्त हो रहे हैं, वहीं भारत में कोरोनावायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में कोविड-19 मामलों का आंकड़ा 10 लाख पार हो चुका है।

नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। भारत और अमेरिका समेत कई बड़े मुल्क इसकी चपेट में हैं। एक तरफ जहां दुनिया के तमाम मुल्क, जहां अब इस वायरस से धीरे-धीरे मुक्त हो रहे हैं, वहीं भारत में कोरोनावायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में कोविड-19 मामलों का आंकड़ा 10 लाख पार हो चुका है।

Coronavirus

मगर सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि कोरोना की कोई वैक्सीन अब तक नहीं बन पाई है। लेकिन कुछ मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके बेहतर रिजल्ट भी देखने को मिल रहे हैं। प्लाज्मा थेरेपी को एक रेस्क्यू ट्रीटमेंट के तौर पर देखा जा सकता है। ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि प्लाज्मा क्या है, प्लाज्मा थेरेपी क्या है, कोरोना से ठीक हुए मरीज कैसे प्लाज्मा देते हैं और कोरोना मरीज को ठीक करने के लिए कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है।

Corona Plasma

इस मसले पर डॉक्टरों ने विस्तृत से पूरी जानकारी दी है। डॉक्टरों के मुताबिक, ‘ब्लड में तीन कंपोनेंट्स होते हैं। रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्त कोशिका), प्लेटलेट्स और प्लाज्मा। पूरे शरीर के ब्लड का 55 फीसदी प्लाज्मा होता है। ब्लड में जो ऊपरी पीला तरल पदार्थ होता है, वो प्लाज्मा होता है। ये हर इंसान के अंदर पाया जाता है। कोरोना से ठीक हुए मरीज के प्लाज्मा और आम इंसान के प्लाज्मा में फर्क ये होता है कि जब मरीज कोरोना से ठीक हो जाता है उसमें एंटीबॉडी बनते हैं। यही एंटीबॉडी दूसरे कोरोना संक्रमित के काम आते हैं, जो वायरस को नष्ट करते हैं। जब कोरोना संक्रमित रहे शख्स से ब्लड लिया जाता है तो मशीन से फिल्टर कर ब्लड से प्लाज्मा, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को अलग कर लिया जाता है। रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स उसी व्यक्ति के शरीर में वापस डाल दिया जाता है, जिसने प्लाज्मा दान किया और प्लाज्मा स्टोर कर लिया जाता है।’

Plasma Donor

कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव हुआ कोई मरीज जब प्लाज्मा डोनेट करने आता है तो उसे पूरी प्रकिया के बारे में समझाया जाता है। प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मरीज की सहमति ली जाती है। डोनर को बताया जाता है कि आप जनहित में ऐसा कर रहे हैं ताकि दूसरे दूसरे लोगों की जान बचाई जा सके। डोनर का नाम, पता, फोन नंबर समेत सभी जानकारी ली जाती हैं। इसके बाद चेक लिस्ट के आधार पर डोनर की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है।

चेक लिस्ट में वो तमाम मापदंड होते हैं, जिन्हें पूरा करने वाला शख्स ही प्लाज्मा डोनेट कर सकता है या कर सकती है। इसके तहत डोनर की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है। ये देखा जाता है कि क्या उसे कभी पीलिया तो नहीं रहा, कोई लंबी बीमारी तो नहीं रही, शुगर की इंसुलिन तो नहीं ले रहे हैं। थायरॉइड, किडनी या हार्ट की समस्या तो नहीं है। इसके साथ ही ये भी पूछा जाता है कि कोई सर्जरी तो नहीं हुई है, कैंसर का इलाज तो नहीं हुआ है। अगर किसी डोनर की मेडिकल हिस्ट्री में इनमें से कोई भी समस्या पाई जाती है तो उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने के लिए इनकार कर दिया जाता है। लेकिन जो शख्स चेक लिस्ट के हिसाब से मेडिकली फिट पाया जाता है तो उसके साथ प्लाज्मा डोनेट करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ा जाता है। बता दें कि प्लाज्मा डोनेट करने के लिए 18-60 साल के बीच उम्र होना, 50 किलो से ज्यादा वजन होना, प्रेग्नेंसी न होना भी जरूरी है।

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वहीं डॉक्टरों के मुताबिक, ‘चेक लिस्ट में फिट पाने के बाद डोनर की पल्स देखी जाती है, ब्लड प्रेशर चेक किया जाता है, पूरा एग्जामिन किया जाता है। खून की मात्रा चेक की जाती है। डोनर में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 से ज्यादा होना जरूरी होता है। इसके साथ ही ट्राई डॉट टेस्ट भी किया जाता है ताकि ये पता चल सके कि डोनर HIV या हेपेटाइटिस से तो पीड़ित नहीं है। इस तरह के जब सभी बेसिक टेस्ट सही पाए जाते हैं तो फिर डोनर से प्लाज्मा लिया जाता है और इस प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लगते हैं। ब्लड डोनेट के वक्त जैसे शरीर से खून लिया जाता है, ठीक उसी तरह ही ये पूरी प्रक्रिया होती है। जब ब्लड ले लिया जाता है तो उसमें से प्लाज्मा अलग कर लिया जाता है और रेड ब्लड सेल्स व प्लेटलेट्स वापस डोनर की बॉडी में चढ़ा दिया जाता है।’

इसके बाद प्लाज्मा डीप फ्रीजर में स्टोर कर दिया जाता है। डीप फ्रीजर का तापमान -30 से -70 डिग्री रहता है। प्लाज्मा किस ब्लड ग्रुप का है, ये उस पर लिख दिया जाता है। जब किसी कोरोना पॉजिटिव मरीज को प्लाज्मा थेरेपी देने की जरूरत पड़ती है तो मरीज का ब्लड ग्रुप मैच करके प्लाज्मा जारी कर दिया जाता है। डीप फ्रीजर से निकालकर इसे रूम टेंपरेचर तक नॉर्मल किया जाता है और जैसे ग्लूकोज चढ़ाया जाता है, वैसे ही प्लाज्मा कोरोना पॉजिटिव मरीज को चढ़ा दिया जाता है।

Corona

जानें, क्यों जरूरी है कोरोना मरीजों के लिए एंटीबॉडी

जब कोई इंसान कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं जो वायरस से लड़ते हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आम तौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं। अमूमन ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर ही एंटीबॉडी बन जाते हैं। कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनते हैं। कोरोना से ठीक हुए जिन मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी काफी वक्त बाद बनते हैं उनके प्लाज्मा की गुणवत्ता कम होती है, इसलिए आमतौर पर उनके प्लाज्मा का उपयोग कम ही किया जाता है। लेकिन जिनके शरीर में ठीक होने के दो हफ्ते के भीतर ही एंटीबॉडी बन जाती है वो फिर सालों तक रहती है। ये लोग वो होते हैं जिनकी इम्यूनिटी मजबूत होती है. ऐसे लोग एक बार प्लाज्मा डोनेट करने के 15 दिन बाद फिर से प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं, क्योंकि उनके शरीर में एंटीबॉडी बन जाते हैं। यानी अगर कोरोना से ठीक हुआ कोई मरीज प्लाज्मा डोनेट करने के लिए स्वस्थ हो तो वो लगातार प्लाज्मा डोनेट कर सकता है और किसी जरूरतमंद कोरोना मरीज के काम आ सकता है।

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डॉक्टरों के मुताबिक, एक डोनर से आमतौर पर 400-500 ml प्लाज्मा लिया जाता है।  इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी होते हैं। ये प्लाज्मा दो कोरोना मरीजों के काम आ जाता है। किसी मरीज को प्लाज्मा देने पर 1 दिन में भी असर दिख जाता है और किसी को दूसरे दिन भी डोज देनी पड़ती है। आमतौर पर पहले दिन 200 ml प्लाज्मा की डोज दी जाती है। इसके बाद दूसरे दिन भी 200 ml की डोज दी जाती है। ज्यादातर मरीजों पर दूसरे दिन तक प्लाज्मा का असर हो जाता है और उनके हालात सुधरने लगते हैं। मॉडरेट स्टेज के मरीजों को इससे फायदा पहुंचता है, लेकिन अगर पेशंट वेंटिलेटर पर है, बेहोश है यानी सीवियर हालात में है तो उसमें प्लाज्मा देने पर भी ज्यादा सुधार नहीं होता है। अगर दो डोज देने पर भी किसी मरीज को फायदा न पहुंचे तो फिर प्लाज्मा देने का कोई असर उस मरीज पर नहीं हो पाता है।

आपको बता दें कि दिल्ली में देश का पहला प्लाज्मा बैंक ILBS में शुरू किया गया था, जिसके बाद अब एलएनजेपी अस्पताल में भी प्लाज्मा बैंक चालू हो गया है।