नई दिल्ली। कोरोना वायरस की तीसरी लहर को रोकने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। तीसरी लहर को रोकने में वैक्सीनेशन बहुत कारगर उपाय है। अच्छी खबर ये है कि देश में वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती पवार ने बताया कि पहले रोज वैक्सीन की 2.5 लाख डोज बन रही थी। वहीं, अब हर रोज 40 लाख डोज बन रही हैं। इसमें कोविशील्ड और कोवैक्सीन हैं। इसके अलावा स्पूतनिक की डोज भी बन रही हैं। इससे सरकार इस साल के आखिर तक 113 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन कर लेगी। वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने बताया कि हर रोज औसतन 43 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। उन्होंने बताया कि अब तक राज्यों को करीब 52 करोड़ डोज दी जा चुकी हैं। जबकि, 55 करोड़ से ज्यादा डोज जल्दी ही भेजी जाने वाली हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्यों के सरकारी और निजी अस्पतालों के पास अब भी वैक्सीन की 2 करोड़ से ज्यादा डोज बची हुई हैं।
उधर, शनिवार को सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी कंपनी जॉन्सन एंड जॉन्सन की सिंगल डोज वैक्सीन को भी मंजूरी दे दी है। इस वैक्सीन की खास बात ये है कि इसे सामान्य तापमान पर तीन महीने तक रखा जा सकता है। इसके बाजार में आने से दूर-दराज के गांवों में वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाया जा सकेगा। जॉन्सन एंड जॉन्सन वैक्सीन की एफिकेसी दर 85 फीसदी है। यानी ये 85 फीसदी तक कोरोना से बचाती है।
जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन के कई फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी सामने आए हैं। पहला फायदा ये है कि इस वैक्सीन का एक ही डोज लगाना पड़ेगा। यह वैक्सीन फाइजर या मॉडर्ना की तरह एमआरएनए नहीं है। इसे भी कोविशील्ड और कोवैक्सीन की तरह मृत कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के हिस्से लेकर बनाया गया है। जबकि, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन आरएनए आधारित है। दूसरा फायदा ये है कि सिंगल डोज के कारण इसे लगवाने वालों को दूसरा डोज लेने की जरूरत नहीं होती। यानी उन्हें फिर वैक्सीनेशन सेंटर की लाइन में खड़ा नहीं होना होगा। जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन का तीसरा फायदा ये है कि इसे सामान्य तापमान पर 3 महीने तक रखा जा सकता है। जबकि, कोविशील्ड और कोवैक्सीन को माइनस 4 से माइनस 8 डिग्री के बीच रखना होता है। वहीं, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री पर रखना पड़ता है।
अब बात करते हैं इस वैक्सीन के नुकसान की। इस वैक्सीन को लगवाने के बाद कोरोना से बचाव तो होता है, लेकिन इसकी एफिकेसी यानी असर सिर्फ 85 फीसदी है। यानी 15 फीसदी तक बचाव नहीं मिलता है। इस वैक्सीन को लगवाने के बाद 14 दिन तक कोई और वैक्सीन लगवा नहीं सकते। इस वैक्सीन के इस्तेमाल से अमेरिका में कई लोगों में खून के थक्के बनने की शिकायत आई थी। जिसके बाद इस साल 13 अप्रैल को अमेरिका सरकार ने जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी, लेकिन 23 अप्रैल को इस रोक को हटा लिया गया।
वैक्सीन के साथ एक विवाद तब भी जुड़ा, जब हाल ही में सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि इसमें इंसानी भ्रूण का डीएनए भी मिलाया गया है। इस पर अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस स्थित रोमन कैथोलिक आर्चडियोसिस ने बयान जारी कर विरोध जताया। बाद में कंपनी की ओर से कहा गया कि वैक्सीन में लैब में तैयार इंसानी भ्रूण कोशिकाएं इस्तेमाल की गई हैं। इंसानी भ्रूण से इसका कोई नाता नहीं है।