नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र सड़कों पर उतरकर यूपी लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) द्वारा लागू किए गए नॉर्मलाइजेशन सिस्टम का विरोध कर रहे हैं। छात्रों का आरोप है कि नॉर्मलाइजेशन सिस्टम निष्पक्ष नहीं है और यह उनके भविष्य को प्रभावित कर सकता है। वे इस प्रणाली को खत्म करने की मांग पर अड़े हुए हैं।
क्या है नॉर्मलाइजेशन सिस्टम?
नॉर्मलाइजेशन सिस्टम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें परीक्षा में प्रश्नपत्र की कठिनाई के अनुसार अंकों को समायोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य विभिन्न शिफ्टों में आयोजित परीक्षाओं में कठिनाई के स्तर में अंतर को समाप्त करना है। इस प्रणाली के तहत अभ्यर्थियों का स्कोर प्रतिशत के आधार पर निर्धारित किया जाता है। अगर परीक्षा एक दिन से अधिक चलती है तो परसेंटाइल के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा, लेकिन एक दिन की परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू नहीं होगा।
कब से शुरू हुआ नॉर्मलाइजेशन का विवाद?
हाल ही में यूपी लोक सेवा आयोग ने एक नोटिस जारी कर बताया कि वर्ष 2024 की पीसीएस प्रीलिम्स और 2023 की आरओ-एआरओ परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन प्रणाली लागू होगी। इस नोटिस के बाद से ही छात्रों में असंतोष बढ़ गया है और वे इस प्रणाली को हटाने की मांग कर रहे हैं।
छात्रों का विरोध और चिंता का कारण
छात्रों का कहना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रणाली से उनके अंक सही ढंग से नहीं आ सकते हैं। उनका आरोप है कि परीक्षा के दौरान कभी-कभी पहली और दूसरी शिफ्ट में कठिनाई स्तर में अंतर होता है। इसके कारण एक शिफ्ट में अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्रों का परसेंटाइल दूसरी शिफ्ट के छात्रों से कम हो सकता है। छात्रों का मानना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रणाली निष्पक्ष नहीं है और इससे उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
क्या है यूपीपीएससी का पक्ष?
यूपी लोक सेवा आयोग का कहना है कि नॉर्मलाइजेशन प्रणाली का उद्देश्य सभी परीक्षार्थियों के साथ समानता बरतना है ताकि कठिनाई के स्तर में किसी प्रकार का अंतर न रह जाए। आयोग के अनुसार, यह प्रणाली कई राज्यों में अपनाई जा रही है और इससे परीक्षा के परिणामों में पारदर्शिता आएगी।