
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी समर के दो चरण बीत चुके हैं। चुनाव के अभी पांच चरण बाकी हैं। कांग्रेस की स्थिति देखते हुए लग रहा है कांग्रेस चुनावों से पहले ही घुटने टेक चुकी है। उसके बड़े नेता या तो कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं या फिर चुनाव लड़ने से बचने के लिए राज्यसभा का रुख कर रहे हैं। संभवत: वह जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में उनके जीतने की कोई गुंजाइश नहीं है।
कांग्रेस पिछले दस सालों से विपक्ष में है। उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली, दोनों कांग्रेस की पारंपरिक सीटें मानी जाती हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी अमेठी से चुनावी मैदान में थे। जब उन्हें लगा कि वह चुनाव हार जाएंगे तो उन्होंने केरल के वायनाड से भी पर्चा भर दिया। अमेठी की जनता जो कभी गांधी परिवार को सिर आंखों पर बैठाती थी उसने राहुल गांधी से किनारा कर लिया और राहुल गांधी वहां से चुनाव हार गए। वह वायनाड से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में तो कामयाब हो गए लेकिन उनकी हिम्मत जवाब दे गई। शायद इसी बात के चलते उन्होंने इस बार अमेठी की बजाए रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी भी चुनाव लड़ती रही हैं। पिछली बार इस सीट से सोनिया गांधी लोकसभा पहुंची थीं। इस बार उन्होंने चुनाव न लड़कर राज्यसभा जाने का फैसला किया। भाजपा ने उनके राज्यसभा जाने को लेकर भी बड़ा मुद्दा बनाया है। भाजपा लगातार कांग्रेस पर यह बोलकर हमला कर रही है कि जो चुनाव नहीं जीत सकते वह राज्यसभा का रुख कर रहे हैं। खुद पीएम मोदी बिना किसी का नाम लिए राजस्थान में एक चुनावी सभा में कांग्रेस पर बड़ा हमला बोल चुके हैं।
बता दें कि इस बार सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा पहुंची हैं। उनके अलावा , नीरज डांगी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, प्रमोद तिवारी और मुकुल वासनिक भी राजस्थान से राज्यसभा पहुंचे हैं। सभी कांग्रेस के बड़े नेता हैं। इनमें से डांगी ही वास्तव में राजस्थान से हैं। बाकी सभी बाहरी हैं।
हताश और निराश कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं।अमेठी में हारने के बाद केरल के वायनाड गए राहुल को संभवत: इस बार रायबरेली में कुछ संभावना नजर आ रही है। यहां सवाल उठता है कि मान लीजिए राहुल गांधी दोेनों जगहों से चुनाव जीत जाते हैं तो फिर वह वायनाड सीट छोड़ेंगे या रायबरेली से किनारा करेंगे, क्योंकि नियमानुसार एक व्यक्ति दो सीटों से चुनाव तो लड़ सकता है लेकिन संसद में प्रतिनिधित्व केवल एक ही संसदीय क्षेत्र का कर सकता है। जाहिर एक क्ष़ेत्र को तो उन्हें छोड़ना ही होगा। इसे सीधे—सीधे उस क्षेत्र की जनता के साथ धोखा ही कहा जाएगा।
हालांकि इससे पहले तक कहा जा रहा था कि प्रियंका गांधी भी अमेठी से चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर सकती हैं। अब यह संभावना जताई जा रही है कि यदि राहुल गांधी दोनों ही सीटों पर जीत जाते हैं तो वायनाड में होने वाले उपचुनाव में प्रियंका कांग्रेस की उम्मीदवार बनकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करेंगी।
दरअसल हार सामने देखकर कांग्रेस को इस बात का अंदाजा है कि वह किसी भी सूरत में इस बार तो सत्ता में नहीं आ रही है। जिन राज्यों में कभी कांग्रेस की तूती बोला करती थी वहां पर भी कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब है। कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के रहमोकरम पर विभिन्न राज्यों में चुनाव लड़ रही है।
उदाहरण के लिए बिहार में राजद कांग्रेस के बड़े भाई की स्थिति में है तो उत्तर प्रदेश में सपा, वहीं महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपनी मर्जी चला रहे हैं। कांग्रेस के बड़े नेता उससे लगातार नाता तोड़ रहे हैं। कभी कांग्रेस से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण वहां के कद्दावर नेता हैं। उन्होंने चुनावी समर में कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली है और भाजपा से राज्यसभा पहुंचे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। फिलहाल वह भाजपा के टिकट पर मध्यप्रदेश के गुना से चुनावी मैदान में हैं। ऐसे ही दिल्ली में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं अरविंदर सिंह लवली और कांग्रेस नेता ओमप्रकाश बिधूड़ी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। दोनों ही दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते हैं। लवली तो दस सालों तक दिल्ली सरकार में मंत्री रह चुके हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से नाराज होकर और आलाकमान द्वारा उनकी बात नहीं सुने जाने से नाराज होकर दोनों के इस्तीफा देने की बात कही जा रही है।
आखिर क्यों तमाम राज्यों में कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस के पास लीडरशिप का न होना और कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति है जिसके चलते वहां लिए जाने वाले फैसलों में सीधे गांधी परिवार का दखल होता है। रही बात राहुल गांधी की तो कांग्रेस जब से विपक्ष में आई है, उसके बाद से दोनों लोकसभा चुनावों और विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में वह फेल ही रही हैं। इक्का दुक्का सफलताओं को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस की स्थिति हर जगह डांवाडोल ही नजर आती है। वर्तमान में सिर्फ तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में ही कांग्रेस की सरकार है। पिछले दस वर्षों में राहुल गांधी जहां भी चुनाव प्रचार के लिए गए फिर चाहे वह विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा वहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। ऐसे में जबकि चुनाव के पांच चरण अभी बाकी हैं कांग्रेस को अपनी स्थिति का पहले ही अंदाजा हो गया है। कांग्रेस भले ही जीत के बड़े—बड़े दावे कर रही हो लेकिन असल स्थिति में वह घुटने टेक चुकी है। कांग्रेस के लिए यही बहुत बड़ी गनीमत होगी कि वह पिछले लोकसभा चुनावों जितनी सीट भी इस बार जीत जाए।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।