ओडिशा की राजनीति बहुत ज्यादा तोड़फोड़ और उठापटक वाली नहीं रही। लंबे समय से वहां पर नवीन पटनायक मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इस बार ओडिशा में बदलाव होने वाला है। बीजेडी शासित ओडिशा में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं। अभी वहां 42 विधानसभा सीटें और छह लोकसभा सीटों पर आखिरी चरण में 1 जून को वोटिंग होनी हैं जहाँ विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों के नतीजे 4 जून को आएंगे। पिछले विधानसभा चुनाव 2019 में बीजेडी ने यहां जीत हासिल की थी। ओडिशा विधानसभा की कुल 146 में से 112 सीटें बीजेडी ने जीती थी। जबकि बीजेपी ने 23 सीटें और कांग्रेस ने 9 सीटे जीती थीं वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी ने 12 सीटें जीतीं थी, जबकि बीजेपी ने 8 सीटें जीतीं और कांग्रेस केवल 1 सीट जीतने में सफल रही थी।
इस बार बीजेपी ओडिशा में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही है। बीजेपी के इस दावे के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला तो यह है कि पिछले ढाई दशक से ओडिशा में बीजेडी ही शासन कर रही है। युवा हो रही पीढ़ी ने अभी बीजेडी का शासन ही देखा है, इसलिए युवा वोटर वहां इस बार बीजेपी के पक्ष में वोट कर रहा है। लोगों का मानना है कि ओडिशा में अब बीजेडी कमजोर रही है। लोकसभा चुनावों की घोषणा होने के साथ ही बीजेडी के कद्दावर नेता और 6 बार के सांसद भर्तुहरी महताब ने भाजपा का हाथ थाम लिया था। मशहूर संथाली लेखिका दमयंती बेसरा और ओड़िया-बंगाली भाषा के एक्टर और बीजेडी के 2014 से 2019 तक सांसद सिद्धान्त महापात्र बीजेपी में शामिल हो गए थे। यह बीजेडी के लिए बहुत तगड़ा झटका था।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को इस बार बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है। मुख्यमंत्री के करीबी रहे आईएएस अधिकारी वीके पांडियन जो इस्तीफा देकर बीजेडी में शामिल हो चुके हैं उनको लेकर ओडिशा के लोगों में नाराजगी है। वीके पांडियन तमिल हैं। भाजपा ने ओड़िया अस्मिता की बात की है। वहां के लोग पांडियन के दखल को पसंद नहीं कर रहे हैं। वह उन्हें बाहरी मानते हैं। लोगों का मानना है कि पटनायक उन्हीं के हिसाब से काम कर रहे हैं। पांडियन के सरकार के कामकाजों में दखल के चलते बीजेडी के कई नेता भी उससे किनारा कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। वहां स्थानीय लोगों का भी मानना है कि बाहरी लोग ओडिशा की संस्कृति में दखल दे रहे हैं। जाहिर है लोगों का इशारा पांडियन की तरफ है। 2009 में बीजेपी का बीजेडी से गठबंधन टूटा था। इसके बाद से भाजपा ने वहां लगातार अपनी स्थिति मजबूत की है। 2019 में बीजेपी राज्य में 8 लोकसभा सीटों पर जीती थी वहीं विधानसभा में भाजपा मुख्य विपक्षी दल है।
पटनायक की बढ़ती उम्र भी कारण
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को यूं तो लोग वहां पर पसंद करते हैं, लेकिन उनकी बढ़ती उम्र और बीजेडी में और कोई स्थानीय बड़ा चेहरा नहीं होने के चलते लोग वहां पर बदलाव चाह रहे हैं। नवीन पटनायक का स्वास्थ्य भी इन दिनों ठीक नहीं चल रहा है। बुधवार को ओडिशा में एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि वह यह देखकर बहुत परेशान हैं कि पिछले एक साल में अचानक नवीन बाबू की तबीयत इतनी कैसे बिगड़ गई। इस बार बीजेडी के लिए ओडिशा में स्थितियां विषम हैं तो बीजेपी के लिए स्थितियां अनुकूल हैं। वहां की जनता का रूझान बीजेपी तरफ हैं। 4 जून को आने वाले नतीजों में बीजेडी वहां बीजेपी की आंधी में कहीं ठहरती दिखाई नहीं दे रही है।
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