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हार कर जीत का जश्न मनाने वाले विपक्ष को जब होश आया कि हार गए हैं तो फिर से अलापने लगा ईवीएम राग

जब विपक्ष को होश आया कि वह हार चुका है और अब किसी भी सूरत में उसकी सरकार नहीं बनने जा रही है तो विपक्षी नेताओं ने फिर से ईवीएम का राग अलापना शुरू कर दिया, जबकि इस मुद्दे पर वह कई बार मुंह की खा चुका है।

सरकार बनाने का दावा करने वाला इंडी गठबंधन 234 सीटों पर ही सिमट गया। इंडी गठबंधन को उम्मीद थी कि इस बार वह सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार शपथ लेने के आठ दिन बाद जब हार में जीत का जश्न मनाने वाले इंडी गठबंधन को होश आया कि वे हार गए हैं, अब किसी भी सूरत में वह सरकार नहीं बना पाएंगे तो विपक्ष की तरफ से फिर से ईवीएम का राग अलापना शुरू कर दिया गया।

जब चुनाव परिणाम आ रहे थे और इंडी गठबंधन सीटें पर सीटें जीत रहा था तो इंडी गठबंधन को आस हो गई थी कि वह संभवत: सरकार बना लेगा और मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के अभियान को रोक देगा, भाजपा और उसके साथी दल सत्ता से बाहर हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली। सरकार बनाने की मंशा लिए बैठे इंडी गठबंधन का भ्रम टूट गया, लेकिन तब भी उम्मीद थी कि कुछ न कुछ जरूर हो जाएगा, लेकिन सारे पासे उलटे पड़ते गए, तमाम गणित लगाने और जोड़—घटा करने के बाद भी विपक्ष कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सका। पीएम मोदी ने 9 जून को तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ले ली।

हारकर जीतने का जश्न मनाने की खुमारी उतरी तो फिर ईवीएम का राग अलापना शुरू कर दिया गया कि ईवीएम में कुछ गड़बड़ है। पहले अखिलेश ने कहा फिर राहुल गांधी भी ईवीएम पर बोले कि ‘एक ब्लैक बॉक्स है कोई इसकी जांच नहीं कर सकता’

दरअसल चुनावों में बार—बार मुंह की खाने वाले विपक्ष का ईवीएम राग अलापना कोई नहीं बात नहीं है, हां ये बात दीगर है कि जब किसी चुनाव में कांग्रेस या उसके साथी दल जीतते हैं तो वह ईवीएम पर सवाल नहीं उठाते। हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना दोनों में कांग्रेस की सरकार है, वहां पर कांग्रेस ने कभी ईवीएम पर सवाल नहीं उठाया। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जबरदस्त चुनाव लड़ा था लेकिन फिर भी वहां ममता जीतीं और वह मुख्यमंत्री बनी, तब भी ईवीएम पर सवाल नहीं उठाए गए। 2018 में राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को हराया था दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, तब भी ईवीएम का राग नहीं अलापा गया था। कर्नाटक में कांग्रेस जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही तब भी ईवीएम पर सवाल नहीं उठाया गया था।

बता दें कि ईवीएम को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी भी की थी जिसमें एक ईवीएम विरोधी याचिका पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि यह आविष्कार इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में एक महान उपलब्धि है और राष्ट्रीय गर्व का विषय है, बावजूद इसके ईवीएम पर सवाल उठाने से विपक्ष बाज नहीं आता है।

जब भी कांग्रेस और उसके साथी दलों में कोई जीत जाता है तो ईवीएम बिल्कुल सही हो जाती है। ईवीएम हैक होने को लेकर विपक्ष की तरफ से कोई सवाल नहीं उठाता है, हां यदि हार जाते हैं तो सवाल उठाया जाता है, सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं लगाई जाती हैं। जब चुनाव आयोग बुलाकर अपनी बात साबित करने को कहता है तो वहां पर ईवीएम हैकिंग का दावा करने वाले सभी दल फेल साबित हो जाते हैं।

अब फिर से यही हो रहा है। ईवीएम राग अलापना मनोरंजन का साधन सा बन गया है। जीते तो सब सही, हारे तो ईवीएम हैक की गई। राहुल गांधी द्वारा दिए जाने वाले इस तरह के बचकाना बयानों के चलते ही उनकी छवि आज तक गंभीर नेता की नहीं बन पाई है। बेहतर यही है कि ईवीएम का राग अलापने की बजाए विपक्ष अपनी इस हार पर मंथन और चिंतन करे और संसद में अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।