नई दिल्ली। विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित लाल बहादुर शास्त्री की मौत की साजिश पर बनी फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ बनाने के बाद वो रोंगटे खड़े करने वाली एक और फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files Trailer Out) लेकर आ रहे हैं। इस फिल्म का ट्रेलर पहले ही लॉन्च हो चुका है, जिसमें कश्मीरी पंडितों पर गुजरी दास्तान को दिखाया गया है। फिल्म के ट्रेलर में दिखाए गये सीन्स हिला कर रख देते हैं तो फिल्म देखने के बाद दर्शकों का क्या हाल होगा ये तो बाद का विषय है। इस फिल्म में कश्मीर नरसंहार के पीड़ितों की सच्ची कहानियों को दिखाया गया है। ये फिल्म ज़ी स्टूडियोज और अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स ने IAmBuddha प्रोडक्शन के तहत बनाई है। इसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। अपनी कहानी और ट्रेलर से चर्चा में आई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ तमाम फिल्म फेस्टिवल्स के बाद अब भारत में 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होने को तैयार है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ में मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और पुनीत इस्सर अहम भूमिका में नजर आने वाले हैं। अनुपम खेर खुद एक कश्मीरी पंडित हैं, और उनके परिवार ने उस दौर में हुए नरसंहार के दर्द को अपनी आंखों से देखा है। अनुपम खेर ने कई बार कश्मीरी पंडितों के संघर्ष के समर्थन में अपनी आवाज उठाई है। एक हिंदी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इस फिल्म की शूटिंग से जुड़े अपने अनुभव साझा किए…
फिल्म में अनुपम खेर की मां हमेशा कश्मीर में अपने छूटे हुए घर में जाने की जिद करती रही हैं। इस भावात्मक जुड़ाव पर अनुपम कहते हैं, ‘बहुत मुश्किल होता है, वैसा किरदार निभाना जिसे आपने असल जिंदगी में महसूस किया हो। जब विवेक ने जब मुझे यह किरदार ऑफर किया, तो मैंने उनसे इस किरदार का नाम पूछा, तो विवेक ने बताया ‘पुष्कर’। ये बहुत बड़ा संयोग है कि मेरे पिताजी का नाम भी पुष्कर ही है।’
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अनुपम ने आगे बताया कि ‘जब मैं पहली बार सेट पर गया, तो मेरी रूह कांपने लगी थी। सेट का माहौल देखकर मैं परेशान हो जाया करता था। शूट करते समय मुझे तो समझ ही नहीं आया कि आखिर ये सच है या मैं एक्ट कर रहा हूं। इस किरदार को मैं इसे अपने जीवन का सबसे कठिन किरदार मानता हूं। ये सारी कहानियां मैं अपनी मां और मामा से सुनता आया हूं। हर शॉट के बाद मैं और विवेक बैठकर रोते थे। इस इमोशन को बता पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल है।’
फिल्म पूरी होने के बाद उन्होंने इसे अपनी मां को दिखाया। अनुपम कहते हैं, ‘जब मैंने ये फिल्म अपनी मां को दिखाई, तो उसे देखने के बाद वो खामोश हो गईं और दो दिनों तक उन्होंने घर पर किसी से भी बात नहीं की। आप सोच सकते हैं कि बचपन में जो उस सदमे से गुजरा हो, उसका क्या हाल होगा? मैं चाहता हूं कि इस फिल्म के जरिए कश्मीरी पंडितों का दर्द लोगों तक पहुंचे।