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Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों ने सुनाए ये 4 फैसले, सभी के अलग-अलग मत, लेकिन सबकी सुई एक जगह आकर टिकी!

Same Sex Marriage Verdict: जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समलैंगिक विवाह की रवायत प्रचीन काल से रही है। ऐसे पौराणिक कथाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि समलैंगिक विवाह की परंपरा वर्षों से हमारे देश में रही है। इसके साथ ही मैं इस बात के भी खिलाफ हूं कि समलैंगिक विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के खिलाफ है।

नई दिल्ली। आज देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें भारत के सुप्रीम कोर्ट कोर्ट पर टिकी हुई थी, क्योंकि आज कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाया है। सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए देशभर से कई लोगों ने शीर्ष कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। वहीं, जैसे ही खबर आई कि शीर्ष कोर्ट कल यानी की मंगलवार को इस पर फैसला सुनाने जा रही है, तो लोगों के जेहन में यही सवाल उठे कि क्या समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी? बता दें कि इसी साल मई माह इस मुद्दे पर 11 दिनों तक लगातार सुनवाई हुई थी। जिसके बाद 11 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। वहीं, आज इस पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। बता दें कि इससे पहले साल 2018 में धारा 377 को रद कर दिया गया था, जिसके बाद समलैंगिक विवाह को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। आइए, अब आगे आपको विस्तार से बताते हैं कि कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपने फैसले में क्या कुछ कहा है। बता दें कि इस ज्वलंत मुद्दे पर आज कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने फैसला सुनाया है। जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर सभी जजों ने इस पर अपना फैसला सुनाया है।

sc bench on same sex marriage

सीजेआई चंद्रचूड़ का फैसला

चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक विवाह आज महज उच्च तबके तक सीमित ना रहकर समाज के हर वर्ग तक अपनी पहुंचा बना चुका है। आज की तारीख में कई लोग इसे स्वेच्छा से अपना रहे हैं। लिहाजा उन्होंने सरकार से इसे कानूनी मान्यता देने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सरकार का काम आम लोगों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना होता है और अपने पसंद का जीवन साथी चुनना देश में रहने वाले हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। चीफ जस्टिस ने कहा कि पिछले 200 सालों में विवाह में कई प्रकार के बदलाव आए हैं, जिसका सीधा असर आज की तारीख में समाज में पड़ रहा है। वहीं, सीजेआई ने स्पेशल मैरिज एक्ट में से समलैंगिक विवाह को निरस्त किए जाने के फैसले को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह को इस एक्ट में होना चाहिए।

सीजेआई ने कहा कि हर व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है। ठीक उसी तरह से समलैंगिक जोड़ों को भी अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में शामिल होता है। सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने से रोकना भी संविधान के खिलाफ है। यह मौलिक अधिकार के खिलाफ है। लिहाजा इस तरह की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। सीजेआई ने कहा कि केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे देश में समलैंगिक जोड़ों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। उधर, सीजेआई ने इस बात पर जोर दिया है कि केंद्र सरकार को समलैंगिक जोड़ों के लिए एक कमेटी गठित करने का काम दिया जाना चाहिए, जिसका काम ऐसे लोगों लिए राशन कार्ड, पहचान पत्र सहित अन्य प्रकार का कानूनी कागजात बनाना होना चाहिए, ताकि हमारे देश में समलैंगिक जोड़ों की संख्या का सही निर्धारण हो सकें।

जस्टिस संजय किशन कौल ने अपने फैसले में क्या कहा?

वहीं, जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समलैंगिक विवाह की रवायत प्रचीन काल से चल रही है। ऐसे पौराणिक कथाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि समलैंगिक विवाह की परंपरा वर्षों से हमारे देश में रही हैं। इसके साथ ही मैं इस बात के भी खिलाफ हूं कि समलैंगिक विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट के खिलाफ है। मैं यह मानता हूं कि यह मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है, क्योंकि हर व्यक्ति को अपने पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार होना चाहिए। सरकार को एक कमेटी गठित करनी चाहिए, जो कि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता दिलाने की दिशा में काम करें। जस्टिस कौल ने कहा कि अब समय आ चुका है कि समलैंगिकों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो।

जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का फैसला

जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने कहा कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है, बल्कि संबंध बनाना एक अधिकार है। हाालंकि, हम सरकार को कानून बनाने का अधिकार नहीं दे सकते हैं। हर व्यक्ति को अपने पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है। हालांकि, मैं चीफ जस्टिक के उस आदेश से खुश नहीं हूं, जिसमें यह कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेना का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। वहीं, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने इस बात पर जोर दिया है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करें कि समलैंगिक जोड़ों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो।

जस्टिस पी एस नरसिम्हा का फैसला

उधर, जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने अपने फैसले में कहा कि मैं जस्टिस भट्ट के फैसले के सहमत हूं। लेकिन, कुछ बातों से सहमत नहीं हूं। उन्होंने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को शादी की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हालांकि, अगर किसी को लगता है कि वो किसी के अपने पसंद के साथ रह सकता है, तो वो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है।

अब यहां समझिए पूरा फैसला

दरअसल, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने लंबी जिरह के बाद समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है। सभी जजों ने एक राय बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि कानून बनाना सरकार का काम है। हम सिर्फ विवेचना कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार इस संदर्भ में समिति बना सकती है, जो कि समलैंगिक विवाह के संदर्भ में विचार विमर्श करें, ताकि समलैंगिक जोड़ों को किसी भी प्रकार की समस्या ना हो, क्योंकि वो भी इसी देश का हिस्सा हैं। वहीं, पांच जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से यह फैसला सुनाया है कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है। बहरहाल, अब इस पूरे मुद्दे पर आगामी दिनों में केंद्र सरकार का क्या रुख रहता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।