newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

संतों ने उठाई मांग, हिंदुओं के धार्मिक स्थलों से भेदभाव क्यों ? मंदिरों की मुक्ति के लिए अब राष्ट्रीय आंदोलन

हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंट एक्ट के तहत देश के करीब 4 लाख मंदिर आते हैं। ब्रिटिश शासन काल के समय 1923 में मद्रास हिंदू रिलीजियस एनडाउमेंट एक्ट पारित हुआ था। 1925 में हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंट्स बोर्ड का गठन हुआ।

नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में इसी महीने से साधु-संतों ने मंदिर मुक्ति आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत की है। इस आंदोलन का उद्देश्य- देश के मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराना है। देश भर के साधु-संतों की मांग है कि- मंदिरों और मठों को सरकारी के कब्जे से मुक्त कराने के लिए कानून बनाया जाए। साधु-सतों का आरोप है कि इस देश के बहुसंख्यक हमेशा राजनीति के शिकार रहे हैं, इसलिए आज भी उनके धार्मिक स्थल सरकारी कब्जे में है। साधु-संतों का आरोप है कि इसी कानून की वजह से मंदिरों को मिलने वाले दान का इस्तेमाल अलग-अलग राज्यों की सरकारें अपनी मनमर्जी के मुताबिक करती है।

क्या है राष्ट्रीय मंदिर मुक्ति आंदोलन ?
देश के अलग-अलग राज्यों के मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत हुई है। इस आंदोलन से जुड़े साधु-सतों की मांग है कि केंद्र और राज्य सरकारें, सरकारी कब्जे से मंदिरों की मुक्ति के लिए कानून बनाए। इनकी मांग है कि बाकी धर्मों की तरह, हिंदुओं के मंदिरों की जिम्मेदारी सरकार के हाथों से लेकर जनता और संतों की समिति को सौंपा जाए ।
दक्षिण भारत में सरकारी कब्जे से मंदिरों की मुक्ति के लिए, पिछले कुछ साल से आंदोलन चल रहा है। उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड की स्थापना के बाद से वहां भी इसके विरोध में आंदोलन चल रहा है। लेकिन ये पहला मौका है कि, जब राष्ट्रीय स्तर पर मंदिरों और मठों की सरकारी कब्जे से मुक्ति के लिए, इस तरह के आंदोलन की शुरुआत की गई है ।

राष्ट्रीय मंदिर मुक्ति आंदोलन के पीछे कौन ?
देशभर के मंदिरों की मुक्ति के लिए इस आंदोलन की शुरुआत अखिल भारतीय संत समिति ने की है। 21 नवंबर को देश भर के साधु-संत दिल्ली के कालकाजी मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस समिति के अध्यक्ष हैं महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत हैं। सुरेंद्र नाथ ‘विश्व हिंदू महासंघ’ के राष्ट्रीय अंतरिम अध्यक्ष भी हैं। इस संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं- यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।

क्या है संत समाज की मांग ?
साधु-संतों का कहना है कि मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे की तरह मंदिरों को भी सरकारी कब्जे से मुक्त होना चाहिए। इस आंदोलन में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि राजनीति की वजह से बहुसंख्यकों की आस्था केंद्रों, मंदिर और मठों के साथ यह अन्याय हो रहा है ।

कार्यक्रम के आयोजनकर्ता सुरेंद्र नाथ अवधूत ने बताया है कि ‘मंदिरों की मुक्ति पर संत समाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी भेज रहा है। जिसमें पूरे विवाद और हमारी मांग का पूरी जानकारी दी गई है। अगर प्रधानमंत्री मोदी हमारी मांगों को स्वीकार कर लेते हैं तो संत समाज उनका धन्यवाद करेगा। अगर हमारी मांगे पूरी नहीं हुई तो हम सड़कों पर उतरेंगे।

साधु-संतों की आपत्ति, सिर्फ हिन्दू मंदिरों के लिए सरकारी बोर्ड क्यों ?
हिंदू धर्म को छोड़कर, अगर बाकी धर्मों की बात करें तो इस्लामिक धार्मिक स्थलों को वक्फ बोर्ड नाम की धार्मिक संस्थाएं संभालती हैं, जिसमें सरकार का किसी तरह हस्तक्षेप नहीं होता है। वहीं सिख समाज के धार्मिक स्थलों का प्रबंधन गुरुद्वारा प्रबंधक समिति करती है। ईसाई धर्म में चर्च और उसकी संपत्तियों की जिम्मेदारी चर्च कमेटी के हाथों में होता है। जैन मंदिरों में प्रबंधन जैन समाज के हाथ में होता है। हिंदू धार्मिक स्थलों को छोड़कर किसी और संप्रदाय के धार्मिक स्थलों में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।

मंदिरों पर क्या है कानून ?
हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंट एक्ट के तहत देश के करीब 4 लाख मंदिर आते हैं। ब्रिटिश शासन काल के समय 1923 में मद्रास हिंदू रिलीजियस एनडाउमेंट एक्ट पारित हुआ था। 1925 में हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंट्स बोर्ड का गठन हुआ। इसमें सरकार की तरफ से कमिश्नर्स और कुछ और अधिकारी नियुक्त किए गए थे। इस कानून के मुताबिक मंदिरों में दान और चढ़ावे का पूरा हिसाब सरकार अपने पास रखती थी। मंदिरों से मिले दान का खर्च भी सरकार अपने हिसाब से करती है। साधु-संतों का आरोप है कि इस कानून की वजह से मंदिरों से मिली राशि का इस्तेमाल सरकार अपनी मनमर्जी के मुताबिक करती है।
आजादी के बाद 1960 और फिर 1991 में मंदिरों से जुड़े कानून में कुछ सुधार हुए, जिसके बाद कुछ मंदिर सरकारी कब्जे से मुक्त भी हुए, लेकिन अभी देश के सैंकड़ों बड़े मंदिर इस कानून की वजह से सरकार के कब्जे में हैं।

क्यों है साधु-संतों को उम्मीद ?
साधु-सतों को आशा है कि मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्ति कराने के लिए कानून बनाया जाएगा, क्योंकि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकार के आने के बाद से मंदिरों के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार पर चरणबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है । साधु-सतों ने उम्मीद जताई है कि मोदी सरकार हिंदुओं की भावनाओं को समझते हुए उनकी मांग पर अवश्य गौर करेगी।