नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा जोकि बटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए थे, उन्हें अब गैलेंटरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। बता दें कि शुक्रवार को गृह मंत्रालय ने गैलेंटरी अवॉर्ड का ऐलान किया है। देशभर के 215 पुलिसकर्मियों (मरणोपरान्त भी) को गैलेंटरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि मोहन चंद शर्मा दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में कार्यरत थे।
जब कभी भी दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर का जिक्र होता है तो जांबाज़ इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की याद जरूर आती है। उस दिन देश के हर टीवी न्यूज चैनल पर केवल बाटला हाउस की ख़बर थी। हर किसी को दिलचस्पी थी कि आखिर वहां हुआ क्या है। लोग तब भी जानना चाहते थे आखिर मोहनचंद शर्मा कौन थे।
दरअसल, इस एनकाउंटर की कहानी 13 सितंबर 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनाट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट से शुरू होती है। उस ब्लास्ट में 26 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हो गए थे। दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया था कि बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था। इस ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बटला हाउस के एक मकान में मौजूद हैं। इसके बाद पुलिस टीम अलर्ट हो गई।
19 सितंबर 2008 की सुबह आठ बजे इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की फोन कॉल स्पेशल सेल के लोधी कॉलोनी स्थित ऑफिस में मौजूद एसआई राहुल कुमार सिंह को मिली। उन्होंने राहुल को बताया कि आतिफ एल-18 में रह रहा है। उसे पकड़ने के लिए टीम लेकर वह बटला हाउस पहुंच जाए। राहुल सिंह अपने साथियों एसआई रविंद्र त्यागी, एसआई राकेश मलिक, हवलदार बलवंत, सतेंद्र विनोद गौतम आदि पुलिसकर्मियों को लेकर प्राइवेट गाड़ी में रवाना हो गए।
जिम्मेदारी को पहले रखने वाले मोहन चंद शर्मा इस टीम के इंस्पेक्टर थे। वे डेंगू से पीड़ित अपने बेटे को नर्सिंग होम में छोड़ कर बटला हाउस के लिए रवाना हो गए। वह अब्बासी चौक के नजदीक अपनी टीम से मिले। सभी पुलिस वाले सिविल कपड़ों में थे। बताया जाता है कि उस वक्त पुलिस टीम को यह पूरी तरह नहीं पता था कि बटला हाउस में बिल्डिंग नंबर एल-18 में फ्लैट नंबर 108 में सीरियल बम ब्लास्ट के जिम्मेदार आतंकवादी रह रहे थे। उनका कहना है कि यह टीम उस फ्लैट में मौजूद लोगों को पकड़ कर पूछताछ के लिए ले जाने आई थी।
इस एनकाउंटर को अंजाम देने के लिए पुलिस की टीम ने एक प्लान बनाया। एसआई धर्मेंद्र कुमार फोन कंपनी के सेल्समैन का लुक बनाकर लैदर शूज पहन कर और टाई लगाए हुए खुद को फोन कंपनी का एग्जेक्यूटिव बताते हुए वह फ्लैट के गेट खटखटाने लगे। खटखटाहट की आवाज सुनते ही अंदर सन्नाटा छा गया। बाकी पुलिस वाले नीचे इंतजार कर रहे थे। इसी बीच इंस्पेक्टर शर्मा सीढ़ियां चढ़ने लगे। दो पुलिसकर्मी नीचे खड़े रहे।
पुलिस वालों ने ऊपर जाकर देखा कि सीढ़ियों के सामने इस फ्लैट में दो गेट हैं। उन्होंने बाईं ओर वाला दरवाजा अंदर की ओर धकेल दिया। पुलिस वाले अंदर घुस गए। उन्हें अंदर चार लड़के नजर आए।। जिनके नाम आतिफ अमीन, साजिद, आरिज और शहजाद पप्पू। सैफ नामक एक लड़का बाथरूम में था। दोनों ओर से धड़ाधड़ फायरिंग होने लगी।
सुबह के 11 बजने तक दोनों तरफ से फायरिंग खत्म हो चुकी थी। इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को दो गोलियां लगी। हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी। आरिज और शहजाद पप्पू दूसरे गेट से निकल कर भागने में कामयाब रहे। गोलियां लगने से आतिफ अमीन और साजिद की मौत हो गई। फायरिंग सुनकर लोग सीढ़ियों से नीचे भागने लगे, अफरा-तफरी का माहौल हो गया। इसका फायदा उठाकर आरिज और शहजाद भी भाग गए। इसी बीच पुलिस ने दो आतंकियों को भागते समय गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ओवेस मलिक नामक एक शख्स ने 100 नंबर पर फोन करके फायरिंग की खबर दी। पीसीआर से जामिया नगर पुलिस चौकी को इस एनकाउंटर की खबर मिली। मेसेज फ्लैश कर दिया गया।
थोड़ी ही देर में पूरे इलाके में एनकाउंटर की खबर आग की तरह फैल गई, लोग इकट्ठा होने लगे। दूसरी तरफ पुलिस बल भी काफी मात्रा में आ गई और उस फ्लैट को सील कर दिया गया। वहीं आठ घंटे इलाज के बाद होली फैमिली हॉस्पिटल में इंस्पेक्टर शर्मा का निधन हो गया। इंस्पेक्टर शर्मा ने अपनी 21 साल की पुलिस की नौकरी में 60 आतंकियों को मार गिराया था, जबकि 200 से ज्यादा खतरनाक आतंकियों और अपराधियों को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन बटला हाउस का यह एनकाउंटर आखिरी साबित हुआ।
इंस्पेक्टर शर्मा की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उन्हें पेट, जांघ और दाहिने हाथ में गोली लगी थी। उनकी मौत खून बहने के कारण हुई। पुलिस ने उनकी मौत के लिए शहजाद को जिम्मेदार ठहराया। इस पूरे एनकाउंटर को लेकर पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए, दो गिरफ्तार किए गए और एक फरार हो गया। वहीं मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए जांच की मांग की।
दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से पुलिस के दावों की जांच कर दो महीने में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। जिसमें दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी गई। आगे दिल्ली हाईकोर्ट ने एनएचआरसी की रिपोर्ट स्वीकार करते हुए न्यायिक जांच से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन वहां भी इंकार कर दिया गया।