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Baghpat Lakshagriha Case: लाक्षागृह विवाद पर एडीजे कोर्ट का बड़ा फैसला, हिंदू पक्ष को मिला 100 बीघा जमीन और मजार पर मालिकाना हक

Baghpat Lakshagriha Case: लाक्षागृह में गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज के अनुसार, लाक्षागृह स्थल पर शेख बदरुद्दीन ने एक समाधि और एक बड़ा कब्रिस्तान होने का दावा किया था। वक्फ बोर्ड ने इस जगह पर अपना अधिकार जताया।

नई दिल्ली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरनावा में एक जगह को लेकर करीब 54 साल से चल रहे विवाद लाक्षागृह मामले में उत्तर प्रदेश की बागपत कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। 54 साल के अंतराल के बाद पिछले साल अदालत की कार्यवाही शुरू हुई, जिसमें 1970 में बरनावा निवासी मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के खिलाफ मेरठ की सरधना अदालत में मुकदमा शुरू किया था।

लाक्षागृह में गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज के अनुसार, लाक्षागृह स्थल पर शेख बदरुद्दीन ने एक समाधि और एक बड़ा कब्रिस्तान होने का दावा किया था। वक्फ बोर्ड ने इस जगह पर अपना अधिकार जताया। इस विवाद में आरोप लगाया गया कि बाहर रहने वाले कृष्णदत्त महाराज का उद्देश्य कब्रिस्तान को खत्म करना और हिंदुओं के लिए तीर्थ स्थल स्थापित करना था। मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है और दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने कानूनी लड़ाई जारी रखी है।

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि इस स्थान पर कभी उनके संत बदरुद्दीन की समाधि थी, जिसे बाद में हटा दिया गया और कब्रिस्तान शेष रह गया। माना जाता है कि 108 एकड़ की विवादित भूमि में एक सुरंग है जिसका उपयोग महाभारत काल में पांडवों द्वारा लाक्षागृह से बचने के लिए किया गया था। इतिहासकारों का तर्क है कि इस स्थल पर व्यापक उत्खनन से हजारों वर्षों से हिंदू सभ्यता का समर्थन करने वाले साक्ष्य मिले हैं। इस खोज ने मुस्लिम पक्ष को आश्चर्यचकित कर दिया है और उनके इस दावे को चुनौती दी है कि इस्लामी इतिहास इस क्षेत्र में हिंदू उपस्थिति से पहले का है।